उच्च और उच्चतम न्यायालय के प्रौढ और उम्रदराज न्यायाधीश कितनी ही बार ऐसे निर्णय देते हैं, जो लगता है कि उन की आयु के लोग दे ही नहीं सकते. वे जिस तरह व्यावहारिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं के रक्षक बन कर सरकार और कट्टरपंथियों के बीच पत्थर की दीवार बन कर खड़े हो जाते हैं उस पर सुखद आश्चर्य होता है.
साल 2015 में मुंबई उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति मृदुला भटनागर ने एक निर्णय में कहा कि जब एक औरत को सैक्स का हक है, मां बनने या न बनने का हक है, गर्भपात कराने का हक है तो विवाहपूर्व सैक्स करने का हक भी है. पर इस हक की आड़ में धोखे से सैक्स संबंध बनाने व बलात्कार करने का आरोप लगाने का हक नहीं बनता. उन के सामने एक ऐसे युवक का मामला था जिस ने एक लड़की से कई वर्ष तक सैक्स संबंध रखे पर विवाह न कर पाया.
लड़की ने शिकायत की थी कि उस के साथ सैक्स संबंध शादी करने के वादे कर के धोखे से बनाए गए थे जोकि बलात्कार है. उस लड़के पर पुलिस ने फौजदारी मामला चलाया तो वह उच्च न्यायालय आया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि पढ़ीलिखी यह लड़की अच्छी तरह जानती थी कि वह क्या कर रही है. यह उस के शरीर की मांग थी जिस के लिए वह लड़के को दोषी नहीं ठहरा सकती.
सैक्स एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. हर जने का शरीर इस की मांग करता है और हर मामले में अविवाहितों को सैक्स करता देख उसे अनैतिक या बलात्कार नहीं माना जा सकता. लगातार बने संबंध तो सहमति के आधार पर ही माने जाएंगे और उस पर आपत्ति करना सरासर गलत है.