कुछ दिनों पहले ठाणे के खेरा सर्कल पर करीब 70 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति चलतेचलते चक्कर खा कर गिर गए थे. वे बेहोश सड़क पर पड़े थे. लोग उन्हें देख कर रुकते, कुछ वहीं खड़े रहे, कुछ देख कर आगे बढ़ गए. काफी समय बीत गया था. बाइक पर जा रहे 23 वर्षीय नंदन ने यह दृश्य देख कर बाइक रोकी. उसे किनारे खड़ी कर पास से गुजरते औटो को रोका. वृद्ध व्यक्ति को सहारा दे कर उठाया और सीधे अस्पताल ले गया.
अस्पताल व पुलिस की सहायता से वृद्ध व्यक्ति के परिवार को तलाश किया गया. पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी थी उन की गुमशुदगी के बारे में, क्योंकि वृद्ध व्यक्ति अल्जाइमर से पीडि़त थे और कुछ बताने में असमर्थ थे. नंदन की कोशिश से वृद्ध व्यक्ति अपने परिवार से मिल पाए, वरना पता नहीं क्या अनर्थ होता.
कुछ ही दिनों पहले मराठी अभिनेता आरोह वेलेनकर घर जाते हुए अपने दोस्त से मिलने को रुके. उन्होंने पूरी घटना बताते हुए कहा, ‘‘जब मैं सड़क के किनारे इंतजार कर रहा था, किसी ने पीछे से लगातार हौर्न बजाया. मैं ने अपनी कार पीछे वाली कार को रास्ता देने के लिए और किनारे कर ली. पीछे वाला ड्राइवर और उस के बाकी दोस्त आए और मुझे गालियां देने लगे. मैं ने उन्हें जाने के लिए कहा तो वे हाथापाई करने लगे. मैं ने फौरन अपनी कार का शीशा बंद कर लिया. वे मेरी कार पर पत्थर मारने लगे. यह घटना एक व्यस्त रोड पर शाम 5 बजे की है. इस घटना से ट्रैफिक जाम भी हो गया.’’
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ऐसी घटनाएं अकसर घटती हैं पर कोई भी पीडि़त की मदद करने नहीं आता. लोग इग्नोर करना पसंद करते हैं. वे या तो वहां से चले जाते हैं या मनोरंजन समझ कर खड़े हो कर देखते हैं. मैं ने उन की गाड़ी का नंबर नोट किया और उन के खिलाफ एफआईआर करवाने गया. 500 मीटर दूर चल कर ही मैं ने उन्हें किसी और के साथ यह सब करते देखा. फिर मैं ने उन्हें सजा दिलवाने का फैसला और पक्का कर लिया. पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. उन्होंने सादे कपड़ों वाले पुलिस वालों को भी गालियां दी थीं.’’
पिछले साल मुंबई में कई टैलीविजन हस्तियों के साथ भी ऐसी घटनाएं घटी थीं. चाहे नववर्ष पर बेंगलुरु में घटी घटनाएं हों या पुणे की व्यस्त रोड पर मराठी अभिनेता आरोह वेलेनकर के साथ शराबी गुंडों द्वारा हुआ दुर्व्यवहार हो, एक बात सामान्य है, सड़क पर उपस्थित मूकदर्शक. कई शहरों में घटने वाली रोजमर्रा के जीवन में ऐसी घटनाएं हमारे सामने एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़ा कर देती हैं. क्या हम मूकदर्शक सिंड्रोम से पीडि़त हो रहे हैं?
सामाजिक प्रयोग
ऐसी स्थिति में लोगों की प्रतिक्रिया सामने लाने के लिए कालेज के कुछ स्टूडैंट्स ने हाल ही में एक सामाजिक प्रयोग किया. परिणाम हैरतअंगेज थे. एक प्रतिभागी ने बताया, ‘‘मैं ने रोडरेज का शिकार होने का अभिनय किया. मेरे दोस्तों ने गुंडों की एक्टिंग की. एक्ट के दौरान मैं वहां खड़े लोगों से मदद मांगने गया, जो यह नहीं जानते थे कि यह सामाजिक प्रयोग है. लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और शांत खड़े रहे.’’
मशहूर हस्तियां हों या आम नागरिक, सब आरोह की तरह कदम नहीं उठाते. कोर्ट केस से बचने के लिए ज्यादातर लोग रोडरेज के इश्यू पर शिकायत दर्ज नहीं करवाते. पुलिस द्वारा पूछताछ से बचने के लिए भी लोग ऐसे मौकों पर चुप रहते हैं.
एक लौ स्टूडैंट कपिल पाटिल कहते हैं, ‘‘लोग ऐसी स्थितियों में फंसना नहीं चाहते, इसलिए कई बार लोग ऐक्सिडैंट के शिकार लोगों की भी मदद नहीं करते. पर मुझे लगता है कि कानून हाथ में लिए बिना मदद करनी चाहिए. यदि पुलिस पीडि़त व्यक्ति की मदद कर रहे व्यक्ति को किसी केस में न खींचे, बल्कि ऐसे लोगों को सपोर्ट करे तो लोग पीडि़त की मदद जरूर करेंगे. दर्शकों से ऐसे असहज मामलों में लड़ाईमारपीट में उलझने की आशा नहीं कर सकते पर कम से कम वे झगड़े शांत करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं या कम से कम फौरन पुलिस को ही बुला सकते हैं.’’
यह स्पष्ट है कि हमारे चारों तरफ मूकदर्शक उपस्थित रहते हैं. वे अब हमारे जीवन का हिस्सा हैं. पर हम उन पर अपनी सुरक्षा को ले कर भरोसा नहीं कर सकते. आजकल सब से जरूरी है डिफैंस तकनीक अपनाना, अपनी सुरक्षा के लिए भी और दूसरों की मदद के लिए भी. एक साइंस स्टूडैंट राजश्री कहती हैं, ‘‘मुझे सैल्फ डिफैंस तकनीक पता है, इसलिए यदि कोई भी किसी को परेशान कर रहा होगा तो मैं इसे जरूर प्रयोग करूंगी.’’
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आर्ट्स स्टूडैंट केतकी बोहरा का भी ऐसा ही कहना है, ‘‘सैल्फ डिफैंस जानना बहुत जरूरी है. एक बार हम अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहे थे. सड़क पर कुछ गुंडे किसी को पीट रहे थे. हम सैल्फ डिफैंस तकनीक जानते थे, हम ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया और उन तकनीकों का प्रयोग कर के पीडि़त की मदद की.’’
कोलकाता की 23 वर्षीया अंतरा दास को पुणे में हाल ही में कई बार चाकू से मारा गया. वह बचाओबचाओ चिल्लाती हुई लोगों की तरफ दौड़ी, तभी मोटरसाइकिल पर जा रहे सत्येंद्र सिन्हा उसे ले कर अस्पताल भागे, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. जब उसे चाकुओं से बारबार मारा जा रहा था, काश, कुछ लोगों ने उस की आगे बढ़ कर मदद की होती तो उसे बचाया जा सकता था और हमलावर को पकड़ा भी जा सकता था.
गवाह बनने में परेशानी नहीं
दिल्ली में भी दिन में ही 21 साल की अध्यापिका को 34 वर्षीय स्टौकर ने 30 बार चाकू मारा था. रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रत्यक्षदर्शी पीडि़त की मदद के लिए आगे आने के बजाय पुलिस कंट्रोलरूम को फोन करना ज्यादा उचित समझते हैं. बाकी लोग ऐसी स्थितियों में चोट लगने से डरते हैं. कई लोगों को यह डर रहता है कि अगर केस बना तो उन्हें गवाही के लिए कहा जा सकता है. पर पुलिस कहती है कि गवाह बनने से परेशानी नहीं होती है. वह लोगों से मूकदर्शक बनने के बजाय सहायता करने के लिए कहती है.
कारण कुछ भी हो, पर मूकदर्शक बनना छोड़ना होगा. आज कोई और मुसीबत में है तो कल आप भी किसी परेशानी में हो सकते हैं. जिस पल आप चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे हों, उस पल कोई अपनी जान गंवा रहा होता है, कोई अपनी इज्जत लुटा रहा होता है. सो, एफआईआर, केस, पूछताछ के डर से किसी की मदद करने से पीछे न हटें, इंसान ही इंसान की मदद नहीं करेगा तो समाज, देश कहां जाएगा, कैसे चलेगा?
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खुद को पीडि़त व्यक्ति की जगह रख कर देखें. मानवता को याद रखें. किसी की जान, इज्जत बचाने में अगर खुद को थोड़ीबहुत मुश्किल झेलनी भी पड़ जाए तो वह कुछ समय की ही परेशानी होगी.
किसी को भी मुश्किल में देखें, तो मूकदर्शक न बने रहें, बल्कि उस की यथासंभव मदद जरूर करें. याद रखें, मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं.