मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपाती रहती है कि उस ने मुसलिम औरतों को 3 तलाक की क्रूरता से बचाया पर वह यह नहीं बता सकती कि जिन मुसलिम मर्दों ने 3 तलाक नहीं दिया क्या उन की शादियां बच गईं और मियांबीवी राजीखुशी रहने लगे? अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की जो आदत हिंदू कट्टरवादियों में है वह धर्म से परे नहीं देखती कि जब पतिपत्नी की न बने तो कोई काजी, पंडा, जज, कानून कुछ नहीं कर सकता.
17 या 18 सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जोड़े को तलाक दिलवाया जिस में पत्नी पति के घर सिर्फ 35 दिन रही और फिर मायके या अपने खुद के घर जा बैठी पर पति को तलाक देने को तैयार नहीं हुई. हिंदू पति के पास मुसलिम मर्द की तरह 3 तलाक ए हसन का हक होता तो वह अदालतों की कुरसियां 18 साल तक न तोड़ता रहता. उच्च न्यायालय ने उसे पत्नी की क्रूएलिटी की वजह से तलाक दिलवा दिया क्योंकि हिंदू मैरिज ऐक्ट में ब्रेकडाउन औफ मैरिज की बात कह कर तलाक लेने का हक दोनों को मिल कर या अकेले, दूसरे के मना करने के बावजूद नहीं है.
यह हिंदू औरत और हिंदू पुरुष दोनों के प्रति सनातनी सोच की वजह से सामाजिक अत्याचार है, जो मुसलिम कानून के 3 तलाक यानी तलाक ए इद्दत से ज्यादा खतरनाक और बेहूदा है. जब मियांबीवी की न बने तो वे अपनेअपने रास्ते पकड़ें यही सही है.
2004 में हुई शादी पर 35 दिन बाद ही घर छोड़ कर चले जाना पर तलाक न देना औरत को सनातन धर्म की वजह से करना पड़ता है. वह पत्नी जानती है कि पति का घर छोड़ कर आने के बाद यदि उसे तलाक मिल गया तो उस की हालत विधवा जैसी पापिन की हो जाएगी. वह न शृंगार कर पाएगी, न सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले पाएगी. हिंदू औरतों को तलाक के बाद पति नहीं मिलते क्योंकि लड़के तलाकशुदा औरत से शादी करने से डरते हैं. धर्म भी कहता है कि उन्हें अक्षत योनि वाली स्त्री से ही शादी करनी चाहिए.
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