नजरें तो सभी की एक सी होती हैं, लेकिन नजरिया एक जैसा नहीं होता. भारतीय समाज में आज भी बेटियों को ले कर लोगों के नजरिए में खास फर्क देखने को नहीं मिल रहा. हां, यह बात अलग है कि पहले के मुकाबले हालात कुछ बेहतर हैं. जिस नजरिए से आप अपने बेटों को देखते हैं अगर उसी नजरिए से बेटियों को भी देखना शुरू कर दें तो उन का भविष्य भी बदल सकता है.
हमारे देश में पुराने समय से बेटा और बेटी को ले कर हमेशा से भेदभाव होता रहा है. लेकिन आज 21वीं सदी में जिस तरह से तकनीक लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है, ठीक उसी तरह हमारी सोच भी प्रगतिवादी होनी चाहिए. पिछड़े इलाकों में आज भी यह रिवाज है कि पहले घर के लड़के खाना खाएंगे उस के बाद लड़कियां. लड़कियों से शिक्षा को ले कर आज भी नाइंसाफी की जा रही है. मादा भू्रण हत्या, बलात्कार, लिंग असमानता जैसी भीषण समस्याएं घरघर में देखने को मिलती हैं.
21वीं सदी में जीने के बावजूद लड़कियों को ले कर समाज में अलग तरह की सोच विकसित है. यही वजह है कि रोजाना देश में कहीं न कहीं किसी बच्ची को जन्म लेने से पहले मौत की नींद सुला दिया जाता है. किसी को छींटाकशी से दोचार होना पड़ता है, तो कोई बलात्कार का शिकार होती है. इन सारे मामलों में किसी भी तरह से लड़कियों का कोई दोष नहीं होता. लेकिन समाज में उन्हें ही गिरी नजरों से देखा जाता है.
जानिए, कुछ ऐसी जाबांज बेटियों के बारे में जो सामाजिक भेदभाव, घोर अभाव के बावजूद शीर्ष तक पहुंची और दूसरों के लिए मिसाल बन गईं: