प्रकृति से खिलवाड़ हम खुद ही कर रहे हैं, यह साफ है. जल्द ही वह समय आ जाएगा जब हर व्यक्ति के पास रोज का सिर्फ 1 बालटी पानी नहाने, पीने, खाना बनाने और यहां तक कि फसल उगाने तक के लिए नहीं बचेगा.
इस का बहुत बड़ा दोष मीट उद्योग पर जाता है. यह उद्योग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एकतिहाई ताजा पानी इस्तेमाल कर रहा है और इस उद्योग का उत्पादन 23 करोड़ मिट्रिक टन (2002 में) से बढ़ कर 2050 तक 46 करोड़ मिट्रिक टन हो जाएगा.
अगर दुनिया के हर देश में मीट इसी तरह खाया जाए जैसे अमेरिकी खाते हैं तो आज ही पानी न बचे. सारा मीट के उत्पादन में लग जाएगा.
पानी का बेजा इस्तेमाल
दुनिया भर में हर साल करीब 40 अरब जानवर मार कर खाए जाते हैं. उन में ज्यादातर चिकन है, क्योंकि 1 किलोग्राम चिकन 200 से भी कम में मिलता है. भारत में पिछले साल 270 करोड़ चिकन मार कर खाए गए थे. चिकन खाने वाले अपनेआप को दाल खाने वालों से ऊंचा समझते हैं न. चिकन उत्पादन में पानी का इस्तेमाल बहुत होता है.
मुरगियों को दाना खिलाने के लिए उगाना पड़ता है और पानी की इस के लिए जरूरत होती है. पोल्ट्री फार्म पानी गंदा भी करते हैं और यह गंदा पानी खेतों की सिंचाई में भी इस्तेमाल नहीं हो सकता. हर मुरगा कुल मिला कर 1 लिटर से ज्यादा पानी इस्तेमाल कर लेता है और इतना साफ पीने लायक पानी उत्तर भारत के कई गांवों में लोगों को मुहैया नहीं होता.
मुरगियों को मक्का, सोयाबीन, बाजरा, गेहूं, चावल आदि खिलाया जाता है और आमतौर पर 1 किलोग्राम दाल उगाने के लिए 1000 लिटर पानी की जरूरत होती है.