आज के दौर में सैल्फी युवाओं व किशोरों के लिए फैशन व जनून बन गई है. वे अपनी मनचाही तसवीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के अलावा व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं. इस में उन की खुशियां, फैशन और भाव झलकते हैं. इस में कोई दो राय नहीं कि अपनी तसवीरें लेने का सब से बेहतरीन और आसान तरीका सैल्फी ही है.

यह सुनहरा पहलू है, लेकिन दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में सैल्फी से होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. स्थिति उन के लिए और भी खतरनाक है जो सैल्फी के लिए सारी हदों को लांघ जाते हैं. वे भूल जाते हैं कि जिंदगी की अहमियत एक सैल्फी से कहीं ज्यादा होती है.

खतरनाक सैल्फी लेने की होड़ में कब किस की सैल्फी आखिरी साबित हो जाए इस को कोई नहीं जानता. इस के खतरनाक रूप सामने आने के बाद युवाओं को खतरों से बचाने के लिए अब कानून का सहारा लेना पड़ रहा है. रेलवे ने पटरियों को ‘नो सैल्फी जोन’ घोषित कर दिया है. ऐसा करने वालों को जेल की हवा खाने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. यात्रियों को खतरों से आगाह भी किया जाएगा.

युवाओं के लिए बनी खतरा

जब वर्ष 2005 में सैल्फी शब्द सामने आया, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह इतना चर्चित हो जाएगा और खतरा भी बनेगा. शब्द की तेजी से हुई चर्चाओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013 तक यह सब से ज्यादा चर्चित हो गया.

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