बढ़ती बेरोजगारी ने अभिभावकों को अपने बच्चों के कैरियर के प्रति सचेत व चिंतित कर दिया है. हर अभिभावक अपने बच्चे को डाक्टर और इंजीनियर बनाना चाहता है. वे अपने जीवनभर की खूनपसीने की गाढ़ी कमाई से अपने बच्चों को अच्छे कोचिंग संस्थानों में दाखिला दिला कर आईआईटी और मैडिकल की प्रवेशपरीक्षा की तैयारी करा रहे हैं. इलाहाबाद, दिल्ली व कोटा जैसे शहरों के अलावा मध्य प्रदेश के भोपाल, जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर और छत्तीसगढ़ के रायपुर, भिलाई जैसे बड़े शहरों में पीएससी, यूपीएससी, बैंक, रेलवे जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ आईआईटी और मैडिकल की प्रवेशपरीक्षाओं की कोचिंग देने वाले दर्जनों बड़े संस्थान हैं जो बेरोजगार छात्रों से मोटी फीस ले कर अपना व्यवसाय कर रहे हैं.
इस के अलावा जिला और तहसील स्तर पर भी संविदा शिक्षक और पटवारी परीक्षा की तैयारी के लिए भी कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सैंटर उग आए हैं, जो युवाओं की जेब ढीली कर मोटा पैसा बनाने का काम कर रहे हैं. हैरानी की बात यह भी है कि ऐसे तथाकथित कोचिंग सैंटर में उन लोगों द्वारा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराई जाती है जो खुद कभी किसी स्कूली या कालेज की परीक्षा में सफल नहीं हुए. सरकारी नौकरी के साथ मैडिकल और इंजीनियरिंग में अच्छी रैंक पाने को बेताब हजारों युवकयुवतियां मजबूरन इन कोचिंग सैंटरों में जा कर परीक्षा की तैयारी करने में जुटे हुए हैं.
सपने बिकते हैं कोटा में केंद्र में आसीन भाजपा सरकार के प्रधानमंत्री ने 4 साल पहले शिक्षा नीति में बदलाव लाने की बात कही थी. परंतु
4 साल से अधिक समय बीतने के बाद भी शिक्षा नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया. देश के पढ़ेलिखे नवयुवकों के लिए कैरियर गाइडैंस और उचित मार्गदर्शन के लिए सरकारी प्रयासों का नतीजा सिफर ही रहा है. निजी क्षेत्रों ने इस का जम कर फायदा उठाया और कोचिंग सैंटरों के नाम पर बड़ीबड़ी दुकानें, इंस्टिट्यूट खोल कर अपना धंधा जमा लिया है. इस तरह राजस्थान का कोटा शहर तो सपने बेचने वालों का शहर बन गया है.
कोटा में 100 से ज्यादा कोचिंग सैंटर्स इंजीनियर और डाक्टर बनाने का सपना बेचते हैं. इन में देशभर के लगभग एक लाख बच्चे पढ़ रहे हैं. इन कोचिंग सैटरों में पढ़ाई के अलावा बच्चों के रहनेखाने तक का खर्च प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए से अधिक होता है. कोचिंग के इस गोरखधंधे से कोटा के रियल एस्टेट कारोबार ने भी पंख लगा कर ऊंची उड़ान भरी है. सिर्फ कोटा शहर में होस्टलों की संख्या 500 से अधिक है. इस के अलावा बड़ी तादाद में छात्र पेइंगगैस्ट बन कर भी रह रहे हैं.
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था इन फर्जी कोचिंग संस्थानों पर निर्भर है. मैडिकल और आईआईटी की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोटा स्थित इन कोचिंग संस्थानों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. यही कारण है कि देशभर के अभिभावक अपने बच्चों को 8वीं क्लास के बाद ही कोटा में कोचिंग के लिए भेजने लगे हैं. सिविल सेवा के लिए दिल्ली का कारोबार भी कम नहीं
यूपीएससी, पीएससी की तैयारी के लिए इलाहाबाद, मेरठ के अलावा देश की राजधानी दिल्ली में भी आधा सैकड़ा कोचिंग संस्थान हैं जो होनहार नवयुवकों को कलैक्टर बनाने का सपना दिखाते हैं. छोटेछोटे कमरों में चलने वाले इन कोचिंग संस्थानों में भी 2 लाख रुपए की मोटी फीस में 9 महीने के क्रैश कोर्स के माध्यम से आईएएस की तैयारी कराने का दावा किया जाता है. महानगरों में चलने वाले इन कोचिंग संस्थानों में पढ़ना हर वर्ग के बूते की बात नहीं है. दिल्ली में रह कर आईएएस की तैयारी कर रहे मध्य प्रदेश के एक छात्र सिद्धार्थ दुबे कहते हैं, ‘‘दिल्ली में 100 वर्गफुट का एक कमरा 8 हजार से 10 हजार रुपए मासिक किराए पर मिलता है. कोचिंग संस्थानों की फीस और महंगा किराया गरीबवर्ग के प्रतिभाशाली छात्रों के लिए टेढ़ी खीर है.’’
इन कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र यह बात मानते हैं कि अकेले कोचिंग सैंटर के दम पर कोई युवा प्रतियोगी परीक्षा पास नहीं कर सकता. जब तक उस के स्वयं के सार्थक प्रयास न हों. आज कोचिंग सैंटरों में जाना हमारी मजबूरी बन गई है क्योंकि वहां देशभर के कोनकोने से आए प्रतिभावान छात्रों के संपर्क में रहने से एक अनुकूल वातावरण हमें प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए मिल जाता है. शासन, प्रशासन और कौर्पोरेट की तिकड़ी मिल कर देश में लागू वर्तमान दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली को जानबूझ कर बदलना नहीं चाहती. ऐसे में मजबूर हो कर छात्रों को कोचिंग सैंटरों के प्रलोभन में उलझना ही पड़ता है.
कोचिंग संस्थान करते हैं फर्जीवाड़ा देश के बड़े शहरों में चलने वाले ये कोचिंग संस्थान केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी ही नहीं कराते, बल्कि मोटा पैसा देने वालों को परीक्षा में सफल कराने की गारंटी भी लेते हैं. 2 दिसंबर, 2017 को कर्मचारी चयन आयोग यानी एसएससी की परीक्षा में मेरठ के डीएवी स्कूल में मोबाइल के साथ पकड़े गए बागपत निवासी सौरभ धामा ने पूछताछ में कई चौंकाने वाले राज खोले हैं. उस ने बताया कि मेरठ में एक कोचिंग संस्थान के संचालक पंकज धामा ने एसएससी की परीक्षा पास कराने के बदले उस से मोटी रकम मांगी थी. सौरभ ने खुद और अपने भाई की नौकरी के लिए अपनी पुश्तैनी 7 बीघा जमीन गिरवी रख दी थी. जिस के बाद पंकज ने उसे पेपर के साथ आंसर सीट भी उपलब्ध करा दी थी.
कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में नकल कराने वाले गिरोह के तार दिल्ली, हरियाणा के बाद अब उत्तर प्रदेश के मेरठ से भी जुड़ गए हैं. नकल करते पकड़े गए एक अभ्यर्थी ने बताया कि मेरठ में कोचिंग संस्थान चलाने वाला पंकज अब तक कई युवाओं से मोटी रकम ले कर उन्हें नौकरी पर लगा चुका है. इस परीक्षा में कई ऐसे अभ्यर्थी हैं जो पंकज के संपर्क में थे, लेकिन परीक्षा में पकड़ में नहीं आ पाए. मेरठ की यह घटना बताती है कि कोचिंग सैंटर मोटी रकम ले कर देश की परीक्षा प्रणाली से खिलवाड़ कर योग्य बेरोजगार युवकों का हक भी मार रहे हैं.
कोटा, दिल्ली, भोपाल और इंदौर के कोचिंग संस्थान तो आईआईटी और मैडिकल प्रवेशपरीक्षा की कोचिंग लेने वाले छात्रों को हाईस्कूल की कक्षा 10वीं और 12वीं परीक्षा में नियमित परीक्षार्थियों के रूप में सम्मिलित कराने का कार्य भी करते हैं. बताया जाता है कि ये कोचिंग संस्थान अपने यहां दर्ज बच्चों को उसी शहर के निजी स्कूलों से सांठगांठ कर उन को उन स्कूलों में दाखिला दिला देते हैं. निजी स्कूल इन छात्रों की उपस्थिति लगाते रहते हैं जबकि ये छात्र उन स्कूलों में कभी पढ़ने जाते ही नहीं हैं.
आखिर सरकारी तंत्र कब तक शिक्षा को इन निजी संस्थानों के हाथों की कठपुतली बना कर रखेगा? देश के हर विकासखंड स्तर पर प्रारंभ हुए कौशल विकास केंद्रों में पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षक और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं और उन्हें सुदृढ़ बनाने के प्रयास किए जाएं तो शायद बेरोजगार युवाओं का भविष्य संवर सके. आज जहां टैलीकौम सैक्टर को नियंत्रित करने ट्राई, बीमा क्षेत्र के लिए इरडा, बैंकिग और शेयर मार्केट के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी जैसे संस्थान नियंत्रक की भूमिका में कार्य कर रहे हैं तो फिर शिक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को क्यों लूट का अड्डा बना कर रखा गया है?