– ‘बाबा की ऐयाशी का अड्डा’
– ‘गुफा का रहस्य’
– ‘दत्तक पुत्री का सच’
आजकल लगभग हर न्यूज चैनल ऐसी कितनी ही कहानियां और गुफा के आभासी वीडियो दिखा कर लोगों को भ्रमित कर रहा है.
सवाल उठता है कि खोजी मीडिया चैनल्स इतने सालों से कहां थे? न तो बाबा नए हैं, न ही गुफाएं रातोंरात बन गई हैं. फिर यह कैसी दबंग पत्रकारिता है जो अब तक सो रही थी. अब बाबाओं के जेल जाते ही यह मुखरित होने लगी है.
इन स्वार्थी और अवसरवादी चैनलों पर भी जानबूझ कर जुर्म छिपाने का आरोप लगना चाहिए, क्योंकि ये दावा करते हैं कि–देशदुनिया की खबर सब से पहले, आप को रखे सब से आगे… वगैरहवगैरह.
किसी भी बाबा का मामला उजागर होते ही सारा इलैक्ट्रौनिक मीडिया एक सुर में अलापना शुरू कर देता है कि लोग इतने अंधविश्वासी कैसे हो गए?
चैनल्स राशिफल, बाबाओं के प्रवचन, तथाकथित राधे मां या कृष्णबिहारी का रंगारंग शो, प्यासी चुडै़ल, नागिन का बदला, कंचना, स्वर्गनरक, शनिदेव जैसे तमाम अंधविश्वासों पर आधारित कार्यक्रम दिनरात चला कर लोगों के दिमाग में कूड़ा भरते हैं और बेशर्म बन कर टीवी पर चोटी कटवा जैसे मुद्दे पर डिबेट करवाते हैं. फिर पूछते हैं कि लोग अंधविश्वासी कैसे बन गए.
अगर सच में आप जनता को सचाई दिखाना चाहते हैं तो अपने जमीर को जिंदा कर दिखाएं. गरीबी से जूझ रहे लोगों, बढ़ती बेरोजगारी, रोजाना बढ़ रही महंगाई, अस्पतालों की अवस्था, डाकू बने डाक्टरों, जगहजगह पड़े कचरे के ढेरों, भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी तंत्रों की जमीनी हकीकत और निष्पक्ष जांच न्याय प्रणालियों को दिखाओ. तब जा कर नए भारत का सपना कुछ हद तक सही हो सकता है.
पिछले दिनों एक दैनिक अखबार के मुखपृष्ठ पर एक विज्ञापन छपा था. अखबार के एक ही एडिशन में उस के छपने की कीमत कम से कम डेढ़दो लाख रुपए तो होगी ही. ऐसे न जाने कितने एडिशनों में यह विज्ञापन छपा था.
समझ में यह नहीं आता कि इतने महान बाबाओं के समागमों और प्रवचनों के बावजूद देश में असमानता, हिंसक वारदातें, अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं. यही न कि धर्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाते रहो और अपनी दुकान चलाते रहो.
विज्ञापन में यह दावा भी किया गया कि इस कथित ब्रह्मांडरत्न को साक्षात श्रीहरि ने देवराज इंद्र को प्रदान किया था.
कहते हैं कि जिस देश की प्रजा जैसी होती है, उसे वैसा ही राजा मिल जाता है. इस में कमी हम भारतीयों की भी नहीं है. किसी गरीब को 10 रुपए मेहनत के देने हों तो उसे पाठ पढ़ा देंगे, लेकिन मंदिरमसजिदों में, बाबाजी के समागमों में हजारों खर्च कर देंगे.
मीडिया भी है जिम्मेदार
आध्यात्मिक या धार्मिक पोंगापंथ फैलाने वाले चैनल्स व समाचारपत्र बाबाओं की एक ऐसी फौज खड़ी कर रहे हैं जो देश में धर्म के नाम पर लूटखसोट मचा रही है. लगातार बढ़ रही इन की फेहरिस्त और इन पर हर रोज चलने वाले बाबाओं के प्रवचनों में आध्यात्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाया जा रहा है.
धर्मभीरू जनता का जितना शोषण धार्मिकता का लबादा ओढ़े इन बाबाओं ने किया है, उस में चैनलों और समाचारपत्रों का भी बराबर या उस से भी ज्यादा हाथ है. चैनल अपने फायदे को कैश करने के लिए बाबाओं को बराबर पब्लिसिटी और एंकर तक मुहैया करवा कर उन का तथाकथित धार्मिक सामान बेचने का औफर दे रहे हैं.
पाखंडी बाबा किसी भी तरह से अपनी जेबें भरने में जुटे हुए हैं. इन की प्रौपर्टी और बैंकबैलेंस का मुकाबला कुबेरपति भी नहीं कर सकते. भक्तों के बीच ये ऐसे महात्मा हैं जिन का माहात्म्य विवादों में उलझ कर रह गया है. ये मोहमाया छोड़ने का आह्वान करते हैं जबकि वे खुद गले तक मोह और माया में जकड़े हुए हैं.
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