दरअसल, मुझे इस शानदार जानवर को देख कर अफसोस होता है, जिसे सांड़ कहते हैं. मैं जब अलवर के एक बैंक मेले में थी तो देखा कि एक सांड़ बिना किसी का कोई नुकसान किए घुस आया. हर स्टाल वाले, जो सिर्फ बैंकिंग की जानकारी दे रहे थे, उसे मार कर भगाने लगे. राह चलते भी उसे मारने लगे. चौकीदार उसे अपने डंडे से हटाते रहे. वह सिर्फ अपने को बचाने की कोशिश करता रहा. हालांकि उस के साइज के हिसाब से यह कोई आसान न था. अंतत: वह मेले के मैदान से कुछ घाव लिए निकल गया.

सांड़ सब्जी मंडियों में जाते हैं ताकि फेंकी गई सब्जियां, पत्ते और फल खा सकें. पर उन्हें खाना खिलाने की जगह उन पर लाठियां चलाई जाती हैं और कई बार तेजाब तक डाल दिया जाता है. बिना तेजाब के जख्म वाले सांड़ को ढूंढ़ना ही मुश्किल है. गौरक्षक के लिए जाना जाने वाले शहर गोरखपुर की म्यूनिसिपल कमेटी उन्हें पकड़ कर बाड़ों में बंद करती है, लेकिन वहां खाने को कुछ नहीं मिलता. कुछ दिन बाद वे दम तोड़ देते हैं.

गौशाला में भी जगह नहीं

गौशालाएं सांड़ों को नहीं रखतीं. इसीलिए वे गलियों में घूमते रहते हैं और हर रोज पीटे जाते हैं. कुछ को रात को पकड़ कर बूचड़खानों के हवाले कर दिया जाता है. गायों को तो लोग खाना खिला देते हैं पर सांड़ों को खिलाने का कोई रिवाज नहीं है. वे शिव के वाहन के रूप में पूजे जाते हैं पर उन का और उपयोग नहीं है. वे गायों की तरह दूध भी नहीं देते.

अगर मादा गाय को दूध के लिए पालापोसा जाता है तो नर चौपाए को बैल के रूप में ही स्वीकार किया जाता है. जब उस के अंडकोषों को पत्थरों से बेरहमी से कुचल कर खसिया कर दिया जाए ताकि खेतों या बैलगाड़ी में इस्तेमाल करा जा सके. वह गायों को गर्भवती नहीं बना सकते. 4 साल के ऊपर के नर बछड़े कहीं देखने को नहीं मिलेंगे. जहां सांड़ों की पूजा होती है वहां भी उन्हें मारा जाता है.

गायों के गर्भाधान के लिए शुक्राणु वाला सीमन अब खास तरह के सांड़ों से जमा किया जाता है, जिन्हें बांध कर इसी काम के लिए दवाइयां दे कर तैयार करा जाता है और कृत्रिम गर्भाधान से गायों को गर्भवती बनाया जाता है. सांड़ एक आकर्षक प्राणी है पर मरजी का मालिक है. वह अब इसी गुण या अवगुण कहिए का शिकार हो रहा है और शिवभक्त भी नहीं बचा रहे हैं.

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