एक दिन मेरी सहेली रीवा का फोन आया. वह कुछ परेशान सी लग रही थी. पूछने पर उस ने बताया कि उस की 30 वर्षीय बेटी रिचा और दामाद के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा. सुन कर मुझे धक्का लगा कि अचानक ऐसा क्या हुआ जो यह नौबत आ गई? पूछने पर पता चला कि रिचा और समर दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे. रिचा की प्रतिभा के कारण उसे कंपनी में जल्दी तरक्की मिल गई. अब समर उस से कटाकटा रहने लगा. यही नहीं उस पर दबाव भी बनाने लगा कि नौकरी छोड़ दे.
न चाहते हुए भी रिचा ने नौकरी छोड़ दी. आखिर परिवार में तालमेल जो बैठाना था. अब उस के सामने समस्या थी कि वह सारा दिन क्या करे? अकेलापन खाने को दौड़ता. समर सुबह औफिस चला जाता और आने में रात हो जाती.
मन मसोस कर रह जाती बेचारी. उसे अपने कैरियर को तिलांजलि देने का दुख भी साल रहा था. अंतत: वह तनाव में रहने लगी.
अब सवाल यह है कि पति की किसी भी कामयाबी पर खुश होने वाली या उस के लिए मनौती मानने वाली पत्नी के साथ यह व्यवहार क्या सही है? क्या पत्नी को अपनी काबिलीयत दिखाने का मौका नहीं मिलना चाहिए ताकि वह मानसिक तनाव अथवा अवसाद से मुक्त रहे? यदि पत्नी जौब नहीं करती तो उसे दूसरे कामों के लिए भी तो प्रोत्साहित किया जा सकता है?
चेहरे पर हताशा क्यों
एक औरत की जिंदगी उस बस कंडक्टर की तरह होती है, जिस का सफर तो हर समय है पर उसे कहीं जाना नहीं है. पत्नी की जिंदगी कहां जा रही है, कौन सा मोड़ ले रही है और उस की लाइफ में क्या हो रहा है वह नहीं जानती?
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