किसी देश की गरीबी कुछ सप्ताहों या महीनों में खत्म नहीं हो सकती. एक देश का विकास करने में वर्षों नहीं, दशकों लगते हैं. यूरोप, अमेरिका, चीन, सिंगापुर, मलयेशिया, थाईलैंड को लंबा समय लगा था गरीबी की चपेट में से निकलने के लिए. इसीलिए 2014 में विकास की आभा पर जब चुनाव लड़ा गया था तो बहुत सी उम्मीदें जगी थीं पर आज केंद्र सरकार के कार्यकाल के लगभग 4 साल पूरे होने पर भी विकास की कोई किरण नजर नहीं आ रही.
भारत अमेरिकी डौलर में 1890 के आसपास की प्रतिव्यक्ति आय का देश है, इसे प्रगति कर चीन के बराबर पहुंचने में भी दशकों लगेंगे और यदि चीन की उन्नति होती रही तो संभव है कि हम कभी उस स्तर पर पहुंच ही न पाएं. चीन की प्रतिव्यक्ति आय 8,000 डौलर है और अमेरिका व यूरोप में प्रतिव्यक्ति आय 30,000 से 60,000 डौलर है. चीन, यूरोप और अमेरिका की प्रगति की दर धीमी है पर 2 प्रतिशत की दर से भी वे हर साल 300 से 600 डौलर प्रतिव्यक्ति अमीर हो जाते हैं और भारत 6-7 प्रतिशत की दर से भी महज 100-125 डौलर अतिरिक्त कमा पाता है.
देश में हर तरफ बेकारी है, खाली बैठेठाले लोग सारे देश में दिखते हैं जो देश की सामाजिक संरचना की पोल ही खोलते हैं. यहां उत्पादकता बढ़ाने पर कोई काम हो नहीं रहा. बुलेट ट्रेनों या 8 लेन की सड़कों से गरीबी नहीं हटेगी क्योंकि ये कुछ अमीरों की विलासिता के लिए हैं. दूसरों को दिखाने के लिए गगनचुंबी इमारतें और विदेशी गाडि़यां ठीक हैं पर जब तक हर गरीब का कायाकल्प नहीं होगा, देश के विकसित होने का सवाल ही नहीं उठता.