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दिल्ली की कई मार्केटों में आजकल सीलिंग चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जहां भी नियमों के खिलाफ रिहायशी या दफ्तरी इलाकों में दुकानें या रेस्तरां चल रहे हैं उन्हें बंद करा जाए.

ऊपर से तो यह फैसला सही लगता है कि कानून सब के लिए एक सा हो और जो कानून तोड़े उसे रोका जाए या सजा दी जाए पर क्या हर कानून जायज है? लोग अपनी मेहनत के पैसे से जमीन खरीदें, उस पर मकान बनाएं, उस की देखभाल करें और सरकार बीच में आ जाए कि आप यह कर सकते हो, वह नहीं कर सकता इस का क्या औचित्य?

सरकार यह तो कर सकती है कि रिहायशी और गैररिहायशी इलाकों के बीच एक रेखा खींचे पर यह भी जबरदस्ती है और शहरों के विकास व सुविधा के लिए खतरनाक. जैसे किसान का घर, कारखाना, दफ्तर सब एक ही जगह होते हैं वैसे ही हर मामले में दफ्तर, घर, कारखाने एक जगह हों तो काम में आसानी रहे. शहरों की सड़कों पर जो भीड़भाड़ बढ़ रही है उस की वजह भी यही है कि दुनिया के लगभग सभी शहरों में रिहायशी, व्यावसायिक, मनोरंजन, उत्पादन के इलाके अलगअलग कर दिए गए हैं और एक से दूसरी जगह जाने के लिए सड़कों, फ्लाईओवरों, कारों, बसों, मैट्रो, टे्रनों की जरूरत पड़ने लगी है. पहले दिल्ली के चांदनी चौक, चावड़ी बाजार और खारी बावली जैसे व्यावसायिक इलाकों के ठीक पीछे रिहायशी इलाके थे. लोगों को काम की जगह या खरीदारी करने के लिए 10-12 मिनट ही चलना पड़ता था.

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