क्या आज की महिला प्रताड़ना यानी डांटफटकार सह सकती है जबकि न अब वह परदे में है और न ही घर की चारदीवारी तक सीमित है? वह हर क्षेत्र में पुरुष के कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही है. तब फिर क्या कारण है उसे पगपग पर पुरुष वर्ग से मांगना पड़ता है? कभी आरक्षण, कभी अपने लिए अलग से कानून. 1983 में घरेलू हिंसा को सरकार ने इंडियन पीनल कोड के तहत प्रस्तुत किया और फिर कई सालों बाद भारतीय दंड विधान की धारा 498-ए बनी और इसे लागू किया गया.
सरकार द्वारा स्त्री सुरक्षा बिल पास करने का अर्थ है कि स्त्री प्रताडि़त है. घरेलू और अनपढ़ ही नहीं पढ़ीलिखी और कामकाजी भी. निम्नवर्ग और मध्यवर्ग में ही नहीं, उच्चवर्ग में भी स्त्री प्रताडि़त है. एक सर्वे से पता चलता है कि 50% स्त्रियां घरेलू हिंसा से पीडि़त हैं. पति ही नहीं पति के परिवार के अन्य लोगों से भी वे पीडि़त होती हैं. कई बार उन्हें अपने मांबाप और परिवार के अन्य लोगों से मिलने नहीं दिया जाता है. अपराध है पत्नी से मारपीट
पति द्वारा पत्नी पर अत्याचार करने के रोज सैकड़ों केस दर्ज किए जाते हैं. उन में कुछ ऐसे होते हैं कि जान कर हैरानी होती है कि क्या ये हकीकत में पतिपत्नी हैं. अभी तक यह मारपीट अपराध नहीं मानी जाती थी. यही समझा जाता था कि यह पतिपत्नी का आपसी मामला है, लेकिन नए कानून के पास होने के साथ ही यह एक अपराध बन गया है, जिस में पति को 14 साल की जेल तक हो सकती है.