औस्कर अवार्ड विजेता हौलीवुड निर्देशक हार्वे वेंस्टीन ने जब यह स्वीकार किया कि एक अभिनेत्री द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं तब बहुत सारी दूसरी औरतें भी ‘मी टू’ यानी मैं भी शिकार हूं कहने के लिए खड़ी हो गईं. अमेरिका के समाज में महिलाओं ने भले ही यह स्वीकार कर खुलेआम इस अभियान को चलाया हो पर भारत में अभी कोई भी खुल कर इस विषय में बात नहीं करना चाहता.
भारत में मी टू कैंपेन को चलाने वाली महिलाओं की संख्या कम है. औफ द रिकौर्ड बात करने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. फिल्मों और फैशन की दुनिया में बात करने पर पता चलता है कि यहां के हालात अभियान से कहीं अधिक गंभीर हैं. यहां मी टू को इश्यू बनाना उतना सरल भी नहीं है. यह कई तरह की बाधाएं खड़ी करने वाला अभियान हो सकता है. शायद यही वजह है कि भारत में इस अभियान को लोगों ने स्वीकार नहीं किया है.
मी टू के जरिए सभ्य समाज की पोल खुल रही है. सफल महिलाएं तक यह बता रही हैं कि उन को भी कभी न कभी मी टू का शिकार होना पड़ा है. मी टू का मतलब छेड़छाड़ से सैक्स तक की घटनाओं से जुड़ा है. असल में मी टू के लिए पढ़ेलिखे और अनपढ़ जैसी कोई सीमारेखा नहीं है. पहले इन बातों को लोग छिपाते थे, अब इन को बताने लगे हैं. कहा यह जा रहा है कि मी टू जैसे कैंपेन से महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं रुकेंगी. अमेरिका जैसे देश में जहां छेड़छाड़ को छिपाया नहीं जाता वहां भी ऐसी घटनाएं घट रही हैं.