शराब पीना एक बीमारी है. शराब पीने के लिए लोग आप को उकसाएंगे चाहे वे आप के दोस्त ही क्यों न हों. केरल का रहने वाला जैकब ऐसा ही एक व्यक्ति है. उस ने 9 वर्ष की छोटी सी उम्र से ही शराब पीनी शुरू कर दी थी. उस के पिता भी शराबी थे. पिताजी के पीने के बाद जब गिलास में कुछ शराब बच जाती थी, तो उसे वह गटक लेता था. इसी वजह से वह भी शराबी बन गया.
जब वह स्कूल में पढ़ता था तब सस्ती शराब पीया करता था. उस ने अपना बचपन शराब के नशे में ही बिताया और कालेज की पढ़ाई भी छोड़ दी. शराब की बुरी लत के कारण उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा. 2 बार उस ने अपने हाथ की नसें काट कर आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन बच गया. शराबी होने के कारण उस के सगेसंबंधी, रिश्तेनाते सब छूट गए. उस ने समाज व परिवार में अपना सम्मान खो दिया. यह कहानी उस राज्य केरल की है जहां साक्षरता सब से ज्यादा है. सोचिए, अन्य राज्यों का क्या हाल होगा.
शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें अच्छा इंसान बनाता है. यह बात उस लड़की पर सटीक बैठती है जो अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए गांव में ही शराब की बोतलों में पैट्रोल बेचती है. उसे यह परवा नहीं कि लोग क्या कहेंगे. उसे तो बस, अधिकारी बनने की चाह है. इसलिए वह ऐसा करने को मजबूर है. फिरोजाबाद की एक लड़की ठेले पर बैठ कर बड़ी तल्लीनता से किताब पढ़ती रहती है. उस के पास रखी शराब जैसी दिखने वाली भरी बोतल ने लोगों को अचंभे में डाल रखा है.
काफी पूछने पर उस ने बताया कि उसे पढ़ने के लिए इस का सहारा लेना पड़ता है. राहगीरों को बीच रास्ते में पैट्रोल खत्म होने पर कोसों दूर मोटरसाइकिल नहीं घसीटनी पड़ती. पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन बहुत कम छात्रों में देखने को मिलती है.
नशाखोरी में मस्त युवा
हमें अपनी युवाशक्ति पर गर्व है, लेकिन सचाई तो कुछ और ही है. इस समय भारत दुनिया में नशाखोरी के मामले में दूसरे स्थान पर है. यहां 10 करोड़ 80 लाख युवा धूम्रपान की गिरफ्त में हैं. देश में प्रतिवर्ष धूम्रपान की वजह से 10 लाख लोगों की मौत हो रही है. यह आंकड़ा देश में होने वाली कुल मौतों का 10 प्रतिशत है.
देश में पिछले डेढ़ दशक में सिगरेट पीने वालों की तादाद काफी बढ़ी है. सिगरेट पीने के मामले में आज भारत पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर है. वह सिर्फ चीन से पीछे है, जिस रफ्तार से भारतीय युवाओं में सिगरेट पीने का चलन बढ़ रहा है, अगर यही गति बनी रही तो जल्द ही वह चीन को भी पीछे छोड़ देगा.
तबाह होती सभ्यताएं
नशा हमेशा ही विनाशकारी रहा है. नशे के चक्कर में सभ्यता और संस्कृतियां तबाह हो गईं. एक जमाने में चीन भी अफीमचियों का देश कहा जाने लगा था. उस से उबरने में उसे दशकों लगे. आज भी कई देश हैं जो अपने शत्रु देशों से निबटने के लिए वहां के नागरिकों में नशे की लत डालने की कोशिश करते रहते हैं. हमारी सरकार भी नशाखोरी में हमसाज रहती है. राज्यों के आबकारी विभाग एक तरफ नशे को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ मद्यनिषेध विभाग इसे रोकने में. यह कैसा अंतर्विरोध और विरोधाभास है?
नशा कोई भी हो, वह एक मीठा जहर है. नशे को ले कर हमारी सरकारें दोहरा मापदंड अपनाती हैं. एक तरफ तो नशीली वस्तुओं का जोरशोर से उत्पादन और बिक्री हो रही है, वहीं दूसरी तरफ उस का सेवन न करने के खर्चीले अभियान चलाए जा रहे हैं.
लाखोंकरोड़ों रुपए इन विज्ञापनों में फूंके जा रहे हैं. पंजाब राज्य आज नशाखोरी की वजह से ही चर्चा का विषय बना हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, पिछले 10 साल में जहरीली शराब पीने से वहां 11,032 लोगों की मौत हो चुकी है, फिर भी सरकार आंखें बंद किए रहती है.
अभिव्यक्ति की आजादी पर हावी
फिल्मों में शराब पीते हीरो दिखाए जाते हैं. इस का बुरा असर युवाओं पर पड़ रहा है. वे भी फिल्मी स्टाइल में आप को शराब पीते दिख जाएंगे. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि फिल्मों में नायकनायिकाओं द्वारा शराब पीते दिखाने से दर्शकों की मानसिकता पर इस का असर पड़ता है. लिहाजा, इसे प्रतिबंधित किया जाए.
नशे की वस्तुओं के पैकेटों पर दी जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी, गले और मुंह के कैंसर के खौफनाक चित्र और तमाम तरह के विज्ञापन किसी भी नशे को कम करने के लिए रत्तीभर भी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं. ऐसी कोशिशें हास्यास्पद हो कर रह गई हैं.
सरकार की सुस्ती
पूरे पंजाब को नशे ने अपनी गिरफ्त में लिया है, वहां हर तरफ नशा पसरा हुआ है. मादक द्रव्यों ने युवाओं को जकड़ रखा है. अफीम, मौरफीन और हेरोइन जैसे नशीले पदार्थों ने वहां अपना जाल बिछाया हुआ है. पंजाब में सब से ज्यादा हेरोइन का इस्तेमाल होता है. पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से आने वाली हेरोइन की खेप आसानी से यहां पहुंचती है.
नशे की भूख पर वहां तस्करों की पै नजर रहती है. वे पहले पंजाब में ही अपना बाजार तलाशते हैं. हेरोइन की तस्करी में लगे लोगों को पंजाब एक बड़ा बाजार मिल गया है. इस का नशा तो जल्दी लोगों को आदी बनाता है. शरीर के हर हिस्से पर इस का कुप्रभाव पड़ता है. पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेश के लिए इस से बड़ा अभिशाप क्या होगा कि वहां के युवा हेरोइन जैसे खतरनाक नशे की चपेट में हैं.
अब प्रश्न यह है कि क्या सचमुच सरकार चाहती है कि लोग सिगरेटशराब का सेवन न करें? अगर हां, तो फिर वह इन चीजों के उत्पादन पर रोक क्यों नहीं लगा रही है? जनहित में जारी तमाम विज्ञापन आज ढोंग बन कर क्यों रह गए हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर अपने भाषणों में युवाओं के भविष्य का जिक्र करते हैं. क्या नशाखोरी से उन का भविष्य उज्ज्वल होगा?