औरतों को सम्मान देते हुए भी पुरुष क्याक्या बोल जाते हैं इस का नमूना 2012 में दिल्ली में रात निर्भया के बलात्कार, जो बीभत्स व क्रूर था और जिस से पूरा देश उबल पड़ा था, को बैंगलुरु में दिए जाने वाले एक सम्मान समारोह के समय मिला. उस समय कर्नाटक के पूर्व डाइरैक्टर जनरल पुलिस एचटी संगलिना ने कहा कि निर्भया कितनी सुंदर और आकर्षक रही होगी यह उस की मां को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है. निर्भया की मां अवार्ड लेने आई थीं.

संगलिना ने बाद में इसी बात की सफाई देते हुए यह भी कह डाला कि बदमाश तो खूबसूरत औरतों की ताक में रहते हैं और यदि उन के साथ कुछ गलत हो जाए तो उन्हें चुप रह कर सह लेना चाहिए ताकि पुलिस में शिकायत की जा सके. हालांकि निर्भया की मां ने उस फंक्शन के तुरंत बाद संगलिना के बयान पर रोष जता दिया था कि इस कांड की देश भर में हुई भर्त्सना के बाद कुछ नहीं बदला. फिर भी संगलिना का दिमाग इस प्रकार पुरुषवादी बना है कि वे सफाई देते हुए भी गुनाह कर गए.

असल में औरतों के प्रति समाज में पगपग पर एक जहर सा उगला जाता है. बेटियों पर घरों में जब छोटीछोटी बातों पर बंधन लगाए जाते हैं जो बेटों पर नहीं लगाए जाते, तो यह बात साफ कर दी जाती है कि बेटों में केवल लिंग के कारण कुछ विशेषता है. यह बात लड़कियों के मन में बैठ जाती है कि वे हीन हैं. निर्भया जैसे कांड और उन पर आए उबाल से केवल लड़कियों को चेतावनी दी गई कि उन्हें घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. उन में लड़कों को शिक्षा देने की कोई बात नहीं थी कि उन्हें सामाजिक सीमाओं के दायरे में रहना चाहिए. बलात्कारों के विरोध में दुनिया भर में औरतें जो विद्रोह कर रही हैं, जो मी टू आंदोलन कर रही हैं उन में सजा की मांग की जा रही है, सामाजिक दृष्टिकोण बदलने की नहीं. पुरुषों से अपरोक्ष रूप से कहा जा रहा है कि औरतों के साथ चाहे जो मरजी करो पर पकड़े गए तो जेल जाओगे.

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