हिजाब, बुरका, परदा, घूंघट वैसे तो सामाजिक नियमों से बंधे हैं और इन्हें न अपनाने वाले अपने धर्म से अलग नहीं करे जाते पर यह पक्का है कि कुछ को छोड़ कर ज्यादातर औरतें इन्हें अपनी सामाजिक व पारिवारिक गुलामी का रूप ही मानती हैं.
अरब देशों की बहुत सी पढ़ीलिखी युवतियां जो अपने देश में हिजाब या बुरका पहनने को मजबूर रहती हैं, यूरोप के देशों में पहुंचते ही उन्हें बक्सों में बंद कर अपने रूपसौंदर्य पर इतराने का लोभ नहीं छोड़ पातीं.
भारत के कट्टरपंथी घरों से निकलते ही औरतों का परदा या घूंघट सिर से खिसक कर कंधों पर आ गिरता है और उन के गहरे काले बालों का सौंदर्य जगमग करने लगता है.
यह कहना कि औरतें इन्हें खुदबखुद अपनी सामाजिक संस्कृति बचाने के लिए अपनाती हैं, सच नहीं है. सिर पर क्या पहना जाए यह औरतों का अपना स्वविवेक है. एक समय दक्षिण भारत में बालों में फूल लगाने का चलन था पर कोई अनिवार्यता न थी. उत्तर भारत में भी इस का खूब फैशन था पर आज नहीं है.
एक समय लड़कियों ने साधना कट बाल कटवाए थे तो फिर हेयर स्विचों का जमाना आया था. आज नहीं है. जब इन्हें इस्तेमाल करा जा रहा था तो कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. अपनी स्वतंत्रता थी. अच्छा लगे तो करें वरना छोड़ दें.
यूरोप के बहुत से देशों में हवा में लंबे बाल न उड़ें इसलिए स्कार्फ पहनना फैशन था. आज ऐसे हेयर कैमिकल आ गए हैं कि शाम तक बाल बिखरते नहीं हैं और स्कार्फ का प्रयोग न के बराबर हो गया है. सर्दियों में ठंड से बचने के लिए आदमीऔरत दोनों कैप पहनते हैं और गरमियों में नहीं. यह फैशन और सुविधा का मामला है.