निजी स्कूलों में फीस को घटाने की मांग कुछ वैसी ही है जैसे फाइवस्टार होटल से अपने फूड मैन्यू के रेट को कम करने के लिए कहा जाए. वोट के लिए सरकार पेरैंट्स के साथ खड़ी दिखना चाहती है. स्कूल प्रबंधक इसे इंस्पैक्टरराज की वापसी की तरह से देख रहे हैं जिस से निजी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है. ऐसे में डर इस बात का है कि कहीं निजी स्कूलों का हाल भी सरकारी स्कूलों की तरह न हो जाए.
पूरे देश में अभिभावक निजी स्कूलों की बढ़ रही फीस से परेशान हैं. ऐसे में वे उसी सरकार से उम्मीद भी कर रहे हैं जिस के स्कूलों से बचाने के लिए अपने बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले कराए थे. अभिभावकों के एकजुट होने से सरकार ने निजी स्कूलों के लिए नियमकानून बनाने शुरू कर दिए हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) अध्यादेश बनाया है. इस में तमाम तरह के ऐसे प्रावधान हैं जिन से स्कूल संचालक बच्चों की फीस मनमाने तरीके से बढ़ा नहीं पाएंगे. फौरीतौर पर अभिभावकों को लग रहा है कि सरकार के हस्तक्षेप से उन को राहत मिलेगी.
शिक्षा के जानकार लोगों का कहना है कि सरकारी हस्तक्षेप का प्रभाव निजी स्कूलों की गुणवत्ता पर भी पडे़गा. निजी स्कूलों में इंस्पैक्टरराज शुरू होगा, भ्रष्टाचार बढे़गा. जिस से निबटने के लिए निजी स्कूल अपनी गुणवत्ता से समझौता करेंगे. धीरेधीरे निजी स्कूलों का हाल भी सरकारी स्कूलो सा हो जाएगा.
ज्यादातर निजी स्कूलों को सरकार किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं देती है. स्कूल संचालक स्कूल प्रबंधन पर खर्च होने वाला एकएक पैसे का प्रबंध खुद करता है. उस के पास केवल फीस ही अकेला जरिया होता है जिस से वह पैसों का प्रबंध कर सकता है. स्कूल आजकल चमचमाती दुकानों की तरह हो गए हैं. अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला कराने के समय स्कूलों की गुणवत्ता से अधिक बाहरी चमकदमक देखते हैं. शायद ही कोई अभिभावक हो जिसे यह पता हो कि स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर कितने योग्य हैं.