सरकार देशी व विदेशी बड़ीबड़ी दुकानों को खोलने की खुली छूट ही नहीं दे रही, उन में विदेशी पूंजी लगाने की दावत भी दे रही है. इन बड़ी दुकानों, जिन्हें मौल कहा जाता है, को भारत एक बड़ा सुलभ बाजार दिख रहा है जहां अरबों का सामान बेचा जा सकता है क्योंकि यहां की जनसंख्या बहुत ज्यादा है और सुदूर गांवों तक थोड़ाबहुत पैसा आने लगा है.
ये दुकानें लगने को अच्छी लगती हैं. एक ही जगह सैकड़ों चीजें मिल जाएंगी. हर चीज को दिखा कर रखा जा रहा है. ज्यादातर माल नया. सही पैकिंग. दाम फिक्स. कोई मोलभाव नहीं. कभीकभार दुकान की अपनी ही स्कीम में किसी बची चीज पर बेहद कम दामों की छूट. दुकान में ही खानेपीने की जगह. मौज ही मौज.
पर ये मौल, मल्टी ब्रांड स्टोर, सुपर बाजार या किसी और नाम से इन्हें जानिए, देश की ज्यादातर जनता के लिए जख्म पर नमक छिड़कने का काम करेंगे. देश की अर्थव्यवस्था ऐसी है कि यहां ऊपर से नीचे तक उधारी जम कर चलती है. यहां बैंक हैं उधार देने के लिए पर अब तो साफ हो गया है कि बैंक सिर्फ बेईमान भगौड़े धन्ना सेठों को कर्ज देते हैं जिन में से कुछ भाग भी जाते हैं.
छोटे दुकानदार अपनी दुकानदारी उधार के बल पर ही चलाते हैं पर वे गरीब किसानमजदूर को भी उधार देते हैं. ये मल्टी ब्रांड मौल बैंकों से अरबों रुपए उधार लेंगे पर किसी को उधार देंगे नहीं. ये अपने सप्लायर्स से उधार माल खरीदेंगे पर ग्राहक को उधार पर नहीं देंगे. ये चूंकि पूरे बाजार पर कब्जा कर लेंगे, सप्लायर्स जो छोटे दुकानदारों को उधार पर सामान देते रहते हैं, उधारी बंद कर देंगे.
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