हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभाओं के चुनाव भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा सरीखे हैं. अपने विकास के दावों पर उसे खरा उतरना है. वह बचाव की मुद्रा में है.  कांग्रेस के पास खोने को अधिक नहीं है. हिमाचल प्रदेश में तो दोनों पार्टियां 5-5 साल बारीबारी से लूटपाट करती रही हैं. गुजरात में 22 वर्षों से सत्तारूढ़ भाजपा को पराजय की आशंका सता रही है. इन चुनावों में अगर भाजपा हारती है तो यह उस के लिए बड़ा झटका होगा.

देश की भाजपा सरकार देशविदेश में अपनी कथित उपलब्धियों का ढोल पीटती रही है और विकास करने के बड़ेबड़े दावे करती नहीं अघाती. गुजरात को वह मौडल स्टेट के तौर पर प्रचारित करती आई है. पर, कुछ महीनों से गुजरात से निकलते गुस्से को देख कर वह सहमी हुई है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अक्तूबर में जब दौरे शुरू किए और उन की सभाओं में अप्रत्याशित भीड़ दिखने लगी तो गुजरात को अपनी जागीर समझ रही भाजपा भयभीत दिखाई देने लगी.

सहमी भाजपा

गुजरात में 22 वर्षों से एकछत्र राज करने वाली भाजपा को इस चुनाव में पसीने छूट रहे हैं. मोदी और भाजपा का करिश्मा फीका नजर आ रहा है. मोदी और भाजपा द्वारा गुजरात को विकास का पर्याय बताया गया पर राज्य में इस तथाकथित विकास को ले कर आम जनता आक्रोशित दिखाई दे रही है. और गुजरातवासियों के इस आक्रोश को भुनाने का कांग्रेस कोई मौका नहीं गंवाना चाहती.

भाजपा द्वारा दावा किया जाता रहा है कि प्रदेश में खूब विकास हुआ है जबकि राज्य के हालात ठीक नहीं हैं. पिछले 2 वर्षों से यहां 3 बड़े जातीय आंदोलन चल रहे हैं-पाटीदार आरक्षण आंदोलन, ओबीसी आंदोलन और दलित आंदोलन. इन के अलावा किसान, आदिवासी, विमुक्त जातियां भी सरकार से नाखुश हैं. समयसमय पर ये वर्र्ग भी रैलियों, सभाओं के जरिए अपना आक्रोश व्यक्त कर चुके हैं पर सरकार ने इन लोगों की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया और इन वर्गों की आवाज तथाकथित विकास के नगाड़ों के शोर में दब कर रह गई.

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