हमारा एक वर्गविशेष प्राचीन गुरुशिष्य प्रणाली को वैकल्पिक प्रणाली के तौर पर प्रस्तुत करता रहता है और उस के प्रति अपनी भावुकतापूर्ण ललक व्यक्त करता है. गुरुशिष्य प्रणाली के प्रामाणिक दस्तावेज की खोज में ‘गुरुगीता’ नाम की एक पुस्तक पिछले दिनों दिखी. यह इस पुस्तक का 1986 में छपा 5वां संस्करण है. इस से पहले इस का तीसरा संस्करण 1920 में प्रकाशित किया गया था. दूसरा संस्करण 1920 से पूर्व छपा होगा.
यह 221 श्लोकों की पुस्तक है, भारतधर्म महामंडल, वाराणसी से छपी है. इस में गुरु और शिष्य के संबंधों पर महादेवपार्वती के संवाद के रूप में बहुत विस्तार से प्रकाश डाला गया है.
माहात्म्य में ही कह दिया गया है कि इस किताब की एक प्रति दान करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, इस के पाठ से गरीबी दूर होती है, बड़ेबड़े रोग ठीक हो जाते हैं, संपत्तियां प्राप्त होती हैं, बंध्या नारी के पुत्र पैदा हो जाता है और विधवा होने की आशंका दूर हो जाती है, पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है आदि. इदं तु भक्तिभावेन पठ्यते श्रूयतेऽथवा, लिखित्वा वा प्रदीयेत सर्वकालफलप्रदम्.
205 इस गुरुगीता को जो भक्तिपूर्वक पढ़ता, सुनता या लिख कर दान करता है, उस की सब प्रकार की कामनाएं पूरी होती हैं.
सर्वपापहरं स्तोत्रं सर्वदारिद्र्यनाशनम्, अकालमृत्युहरणं सर्वसंकटनाशनम्.
208 यह गुरुगीता सब प्रकार के पापों का नाश करती है, सब प्रकार की गरीबी को दूर करती है, असमय होने वाली मृत्यु का निवारण करती है और सब संकटों को नष्ट करती है.
सर्वशांतिकरं नित्यं वन्ध्यापुत्रफलप्रदम्, अवैधव्यकरं स्त्रीणां सौभाग्यदायकं परम्.
213 इस के पाठ से सब पाप/दुष्ट ग्रह आदि शांत होते हैं, बांझ औरत को भी पुत्र की प्राप्ति होती है, स्त्रियों के विधवा होने की आशंका दूर होती है और परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है.