गुजरात के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी का संघर्ष एक बात साफ करता है कि जीवन संघर्ष का नाम है और कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों ने दिखावे के लिए मंदिरों में खूब मत्थे टेके पर असल में उन्हें जितनी भी सीटें मिलीं, अपनी कर्मठता के कारण. अगर नरेंद्र मोदी चुप बैठ जाते और रातदिन भाषणों की झड़ी न लगाते तो राहुल गांधी गुजराती पेड़ा गटक जाते. अगर राहुल गांधी यह सोच कर 10 जनपथ में दुबक जाते कि 1947 से उन का परिवार सत्ता के शिखर पर ही है तो आज वे कहीं के न होते.
यह राजनीतिक पाठ हर घर को पढ़ना चाहिए. सफल गृहस्थी का राज भी यही है कि हर समय सतर्क रहो, कर्मठ रहो और घर के हर सदस्य को काम में लगाए रखो. बहुत से परिवार विनाश केवल इसलिए देखते हैं, क्योंकि उन की औरतें अपनी मूल जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती हैं और घर को ठीक करने की जगह अपने साजशृंगार या किट्टी पार्टियों में तंबोला खेलने में दक्ष होने को सफलता मान लेती हैं.
घर में पैसा हो तो भी उसे बचाए रखने में उतनी ही मेहनत करना जरूरी है जितनी नरेंद्र मोदी ने लोक सभा में 2 तिहाई सीटों और 29 में से 19 राज्यों की विधान सभाओं के कब्जे के बाद की. हां, उन की कमी इस बात की रही कि उन्होंने सारा बोझ अपने कंधों पर डाल लिया. यह भी हर हाउसवाइफ या वर्किंगवाइफ को एक सबक है कि ज्यादा काम करना थकाता नहीं वरन मजबूती ही देता है. ऐफिशिएंट और इंटैलीजैंट औरत ही घर व बाहर को ढंग से देख सकती है.