शांति सिंह चौहान (सोशल वर्कर, अंकुर फाउंडेशन)
कोरोना वायरस और लॉक डाउन की वजह से माइग्रेंट लेबर जिसे कोई सहयोग नहीं देता, जबकि इन मजदूरों की वजह से बड़े-बड़े शहरों की चमक और शानोशौकत देखने को मिलती है. बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ करोड़ों कमाती है, नेता इसकी आंच पर सत्ता की रोटियां सेंकते है, आखिर कब तक चलता रहेगा ये सब, कौन इनके मूल्य समझेंगे? कौन इन्हें सम्मान और इज्जत की रोटी दो जून की दे सकता है, ये किसी से भीख नही मांगते, बस थोड़ी इज्जत से मेहनत कर खाना और अपने परिवार का पेट पालना चाहते है.
अगर ये अपने शहर या गांव चले गए, तो उन बड़ी-बड़ी कंपनियों का क्या होगा, जिनके लिए ये काम करते है, इकॉनमी कैसे पटरी पर आएगी आदि कितने ही शब्द कहे जा रही थी, मुंबई की अंकुर फाउंडेशन की सोशल वर्कर शांति सिंह चौहान, जो इस लॉक डाउन के बाद से करीब 5 हजार माइग्रेंट लेबर और उनके परिवार को, अँधेरी से लेकर बोरीवली तक खाना खिला रही है, उनके राशन पानी की व्यवस्था कर रही है. उनकी दशा को नजदीक से देख रही है. हर दिन उनके लिए नयी चुनौती लेकर आती है और हर दिन वह उसका सामना करती है.
माइग्रेंट वर्कर्स को खाना खिलाना मेरा पहला काम
शांति हैदराबाद से निकलकर मुंबई अपनी पति और बेटी के साथ नौकरी के सिलसिले में आई और यही रहने लगी. शांति होटल मैनेजमेंट कर चुकी है और पहले अपने बेटी की स्कूल में कुकरी पढ़ाते हुए, होटलों और रेस्तरां में मैनू बनाना, खाने की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए अलग-अलग होटलों में जाकर शेफ को ट्रेनिंग देना आदि करती रही. साथ ही ज्वेल्लरी की शौक होने की वजह से ज्वेलरी डिज़ाइनर बनी और अपना ब्रांड सात्विकी स्थापित की. इन सबके बावजूद भी उन्हें सामाजिक काम करना बहुत पसंद है. वह कहती है कि लॉक डाउन के समय मैं घर पर थी, पर हैदराबाद के एक दोस्त ने मुझे फ़ोन पर बताया कि तेलंगाना के कई वर्कर्स मुंबई में फंसे है और बिना भोजन के परेशान रह रहे है. उसने मुझसे मदद करने को कही और मैंने काम शुरू कर दिया. तक़रीबन 5 हज़ार माइग्रेंट मजदूर परिवारों को राशन पहुंचाई है. इसमें मुझे विदेश के सारे दोस्तों ने फण्ड में पैसे दिए, जिससे एक अच्छी किट जरुरत के सामान, जो तक़रीबन 20 दिन तक चल सके. इसके साथ डिलीवरी हर जगह खुद जाकर किया है, क्योंकि दुकाने बंद होने, खाना न मिलने, सामानों की अधिक कीमत होने की वजह से लोग खाने पीने की चीजों पर झपटने लगते है. ये भूख के मारे ऐसा करने पर मजबूर है. मैं हर रोज करीब 2 हजार परिवारों के लिए ट्रक भरती थी. अँधेरी, कांदिवली, बोरीवली आदि सभी जगहों पर मैंने हर माइग्रेंट परिवार वालों के घर पर सामान पहुँचाया है. इस काम में मेरा पूरा परिवार और ड्राईवर का सहयोग है.
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