सिनेमा समाज का आईना होता है और आज समाज में महिलाओं को जिन ज्यादतियों और वहशियाना हरकतों का सामना करना पड़ रहा है उसे शब्दों में भी बयां करना कठिन है. ऐसा ही एक दरिंदगी भरा अपराध है ऐसिड अटैक यानी तेजाबी हमला. इस हमले की वजह बहुत छोटी सी होती है. किसी पुरुष द्वारा स्त्री को पाने की चाह और इग्नोर किए जाने पर एक झटके में उस स्त्री की जिंदगी तबाह, बस इतनी सी दास्तान होती है ऐसिड अटैक पीडि़ता बनने की. बिना किसी कुसूर लड़की के वजूद को मिटा देने की जिद विकृत पुरुष मानसिकता का जीताजागता उदाहरण होती है.

10 जनवरी, 2020 को रिलीज हुई तेजाबी हमले पर केंद्रित दीपिका पादुकोण द्वारा अभिनीत फिल्म ‘छपाक’ देखने जाते वक्त मेरी आंखों के आगे बारबार तेजाबी हमले की शिकार उस महिला का चेहरा आ रहा था जो 8 साल पहले गृहशोभा के कार्यालय में आई थी. वह अपनी कहानी लोगों के सामने लाना चाहती थी. उस ने अपनी कहानी सुनाते हुए अपने मन की गांठें खोलीं. फिर अपने तन के ढके कपड़े हटाए और साइड में बिखरे बालों को पीछे किया तो उस के साथ हुए हादसे की भयावहता से हमारी रूह कांप उठी. उस की पीठ का लगभग पूरा हिस्सा झुलसा हुआ था. बाईं तरफ चेहरे और गरदन से ले कर बांहें तक झुलसी हुई थीं. यह दृश्य एक दर्दभरी दास्तान बयां कर रहा था.

पढ़ने वालों की आंखें हुईं नम

अपनी कहानी बताते हुए रहरह कर चंडीगढ़ की उस महिला की आंखों से आंसू बहने लगते. आवाज घुट सी जाती और आंखों में दर्द का सागर उमड़ पड़ता. उस ने अपनी कहानी सुना कर जो हिम्मत और दिलेरी दिखाई थी ऐसा करना किसी के लिए इतना आसान नहीं होता. जाहिर था कि उस में जमाने से लड़ने की कूवत अब भी थी. वह नहीं चाहती थी कि कोई और युवती इस तरह की घटना का शिकार हो.

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