अब अदालतों को भी सम झ आ रहा है कि पशुओं पर क्रूरता से राष्ट्र का क्या अहित होता है और उसी के अनुसार निर्णय देने शुरू किए हैं. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव शर्मा ने पशु क्रूरता पर सब से उत्तम निर्णय दिए हैं. प्रकृति और पर्यावरण पर तुरंत और प्र्रभावशाली निर्णय देने में वे सदैव अग्रणी रहे हैं. उन्होंने ही गंगा जैसी नदियों और पशुजगत को न्यायायिक व्यक्ति मानने के महत्त्वपूर्ण निर्णय दिए है.

यही नहीं उन्होंने पुलिस प्र्राथमिकियों से जाति के नाम निकालने, किसानों की आत्महत्याओं, मृत्युदंड प्राप्त कैदियों को सौलिटैरी कौन्फाइंमैंट में रखने की कुप्रथा पर निर्णय दिए हैं.

अभी हाल ही में न्यायाधीश संजय करोल और अरिंदम लोध ने त्रिपुरा में मंदिरों में पशुबलि पर निर्णय दिए हैं. इन्होंने पुजारियों के लालच और मुफ्त के खाने और दान की ललक को सम झते हुए इस बीभत्स, अमानवीय बलि को संस्कृति के नाम पर स्वीकार करवाने की जिद को असंवैधानिक करार दिया है और तब जा कर 525 वर्ष बाद अगरतला के दुर्गाबाड़ी मंदिर में बलि प्रथा समाप्त हुई है.

घरेलू हिंसा के लिए भी जिम्मेदार

दुनियाभर में, जहां भी सरकारें निकम्मी या आलसी हैं, अदालतें ही पशुओं को अनावश्यक क्रूरता से बचा रही हैं. 19 अगस्त, 2019 को राष्ट्रीय बाल व पारिवारिक अदालत परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया कि पशु क्रूरता का सीधा संबंध मनुष्यों में आपसी पारिवारिक हिंसा से जुड़ा है.

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जिन घरों में पशुओं के साथ क्रूरता भरा व्यवहार होता है, वहां घरेलू हिंसा भी ज्यादा होती है. एक शोध के अनुसार 43% वे अमेरिकी जिन्होंने 1988 से 2012 में स्कूलों में निर्दोष बच्चों को गोलियों का शिकार बनाया पशुओं के प्रति क्रूरता के मामलों में भी अभियुक्त रहे हैं.

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