एक समाजसेवी संस्था के दिल्ली के संभ्रांत इलाके में सर्वे से पता  चला है कि 63% घरेलू कामगारों की नौकरी चली गई है क्योंकि अब मालकिनें कोविड-19 के घर में घुसने के भय से किसी को नहीं आने दे रही हैं. कई जगह तो पूरी सोसायटियों ने बाहरवालियों पर ब्रेक लगा दिया है. सिर्फ बिजली वाले और प्लंबर ही बाहर से इमरजैंसी में बुलाए जा रहे हैं.

इन कामवालियों के लिए ये आफत के दिन हैं, क्योंकि उन का वेतन चाहे जितना भी कम क्यों न हो परिवार के पेट भरने के लिए जरूरी था. इसी वेतन के सहारे लोगों ने बचत कर के छोटा टीवी खरीद लिया, मोबाइल ले लिया, 3 अच्छे कपड़े सिला लिए और बच्चे हैं तो उन्हें साफसुथरे कपड़े पहना कर स्कूल भेज दिया. अब यह आय गायब हो गई है.

मालकिनें बहुत लालची हैं, ऐसा नहीं है. अधिकांश मालकिनों की खुद की इनकम कम हो गई है और उन्हें पिछली बचत से काम चलाना पड़ रहा है. काफी लोगों के व्यापार ठप्प हो गए, नौकरियों की बाढ़ खत्म हो गई और वर्क फ्रौम होम के बावजूद कटौतियां हो गईं क्योंकि व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है. मालकिनों को खुद घर का काम करना पड़ रहा है और उन्हें कामवालियों की कमी खल रही है.

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एक तरह से इन घरेलू कामवालियों ने घरों की औरतों को निकम्मा बनाया है. 1970 के बाद जब से एकल परिवार ज्यादा बढ़ने लगे घरेलू कामवालियों की जरूरत बेतहाशा बढ़ गई क्योंकि एकल परिवारों में आय का स्तर कुछ ज्यादा बढ़ने लगा. निठल्लों को एकल परिवारों में पनाह नहीं मिलती है. औरतें खुद भी कमाने लगीं और रसोई,  झाड़ूपोंछा कम पढ़ीलिखी कामवालियों पर आ गया पर इस से औरतों की अपनी मांसपेशियां ढुलमुल होने लगीं.

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