लौकडाउन के बाद देश पर बड़ी आफत आ सकती है. पहले से ही लड़खड़ाते बाजारों, व्यापारों, उद्योगों, बैंकों को 40 दिन बंद रहने के बाद घरघर तक पैसा पहुंचाना बहुत मुश्किल होगा. इन दिनों जो उत्पादन बंद हुआ वह तो एक बात है, इस से बड़ी बात यह है कि सप्लाई चेन टूट गई है.

उद्योगों में मशीनें बंद रहीं और जब खुलेंगी तो कई दिन तो साफसफाई और मरम्मत में चले जाएंगे. उस के बाद कच्चा माल आना शुरू होगा. जब तक गोदामों में है कुछ काम चलेगा पर उस के बाद उस की पूर्ति हो पाएगी मुश्किल लगता है.अंदाजा है कि लाखों नहीं करोड़ों की नौकरियां जा सकती हैं. हम जब नौकरी का नाम लेते हैं, लगता है कि कोई चीज पक्की है, आप की है पर यह केवल सरकारी नौकरियों के साथ है. देश के 3 करोड़ लोग ही सरकारी या अर्धसरकारी नौकरी करते हैं.

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इस के अलावा सब की नौकरी उस कंपनी के जिंदा रहने पर निर्भर है जिस में वे काम कर रहे हैं. 40 दिन काम पर न जाने के कारण जो उत्पादन को हानि हुई उस से करोड़ों की आय बंद हो जाएगी. अभी तक तो घरों की बचत से काम चला लिया है पर बाद में हरेक बचा भुगतान करना होगा, स्कूलों की फीस देनी होगी, किराया देना होगा, ब्याज देना होगा, बिजली का बिल भरना होगा, पानी का बिल देना होगा. ये सब खर्च एकसाथ आएंगे और आमदनी होगी नहीं.

हर घरवाली के लिए लौकडाउन खुलने के बाद बुरे दिन शुरू होंगे जब पुराने खर्चे वहीं के वहीं रहेंगे और नए अपना सिर उठाने लगेंगे. ऊपर से आमदनी का भरोसा नहीं होगा. व्यापारों को हुए नुकसान का खमियाजा हर घर को उठाना होगा. सरकारी नौकरियों में भी ऊपरी कमाई कम हो जाएगी, लोगों के पास पैसा होगा ही नहीं.इस का उपाय है.

सरकार नोट छाप कर उद्योगों और व्यापारों को आर्थिक सहायता दे कर उत्पादन बदल सकती है और मांग पैदा कर सकती है. घरवालियों के हाथों में पैसा आए इस के लिए सरकार नए नोट छाप कर इस लौकडाउन के दौरान हुए नुकसान को पूरा कर सकती है. इस से महंगाई बढ़ेगी पर मांग भी बढ़ेगी.भारत सरकार फिलहाल अपना निकम्मापन दिखाने के लिए जनता पर सीधे या परोक्ष रूप से टैक्स लगा रही है.

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कच्चे तेल के दाम कम हो गए हैं पर जनता को लाभ नहीं दे रही, क्योंकि सरकार को पैसे की सख्त जरूरत है. उसे यह चिंता नहीं कि आम घरवाली अपना बजट पूरा कैसे करेगी.कठिनाई यह है कि सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है कि एक आम घर सरकार की आर्थिक नीतियों से बुरी तरह कैसे आहत हो रहा है. उद्योग व्यापारों का टैंपरेचर तो स्टौक मार्केट से पता चल जाता है पर घरेलू टैंपरेचर केवल घर वालों को सहना पड़ा है. सरकार ऐसे समय धर्म या देशभक्ति के मुद्दों के झुनझुने पकड़ाती है ताकि रोते बच्चे चुप हो जाएं.

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