10 सालों तक घरेलू हिंसा सहने के बाद बच्चों के सुखद भविष्य की खातिर रश्मि आनंद ने 35 साल की उम्र में अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करने का फैसला किया. फिर 9 साल की बेटी व 5 साल के बेटे को ले कर उस घर से निकल गईं जिस में उन्हें निरंतर टौर्चर किया जाता था.

रश्मि आज काउंसलर और लेखिका के रूप में स्थापित हैं. वोडाफोन फाउंडेशन की वूमन औफ प्योर वंडर बुक में भी इन का नाम शामिल किया गया है. वे घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं का दर्द बांटते हुए उन्हें सही राह दिखाने का काम करती हैं. रश्मि को कई अवार्ड्स मिल चुके हैं और तलाक के बाद वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं.

तलाक के बाद दोबारा जिंदगी शुरू करने का अपना अनुभव बताएं?

जब मैं ने पति से अलग रहने का फैसला लिया था उस वक्त ऐसी कोई चुनौती नहीं होगी, जो मेरी जिंदगी में नहीं थी. मेरे पास पैसों की कमी थी. मैं जौब नहीं करती थी. पिता और भाई ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. बेटा खामोश रहता था. बेटी भी डिप्रैशन में रहती थी. ऐसे में मुझे हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था.

उस नर्क से निकलने के बाद मैं ने तय किया कि मैं सिर्फ और सिर्फ  वर्तमान के बारे में सोचूंगी. मैं रात में लिखने का काम करती थी और दिन में बच्चे को इलाज के लिए ले जाती थी. क्राइम फौर वूमन सैल की सहायता से पति के खिलाफ केस दायर किया गया. दिल्ली पुलिस ने मेरी बहुत मदद की. मुझे 2002 में तलाक मिल गया और फिर बच्चों की कस्टडी भी मिली. पर एलुमनी नहीं मिली. किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं थी. उस वक्त घरेलू हिंसा कानून भी नहीं था. ऐसे में अपनी व बच्चों की बेहतर जिंदगी के लिए मुझे खूब संघर्ष करना पड़ा.

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