बाततब की है जब मेरा विवाह हुआ था. मेरे पति एक दिन सुबह कहीं जा रहे थे. उन्हें जाते हुए देखा तो भागीभागी आई और पीछे से आवाज लगा दी, ‘‘आप कहीं जा रहे हो क्या?’’

बस इतना ही कहते वे क्रोधित हो गए और गुस्से में बोले, ‘‘इस तरह क्यों पीछे से आवाज लगा रही हो?’’

मैं बेवकूफ तब भी नहीं सम झी और सामने जा कर खड़ी हो गई. फिर कहा, ‘‘चलो अब बता दो कहां जा रहे हो?’’

उन्होंने मु झे घूर कर ऐसे देखा जैसे मैं ने किसी का कत्ल कर दिया हो, पर घूरने का कारण नहीं सम झ पाई.

2 घंटे बाद जब वापस आए तो बहुत ही आगबबूला होते हुए बोले, ‘‘बड़ी बेवकूफ हो. इतना भी नहीं मालूम कि काम पर जाते समय पीछे से आवाज नहीं लगाते. तुम्हारे टोकने की वजह से मेरा काम नहीं बना.’’

मेरा तो माथा ठनक गया कि यह कैसा अंधविश्वास है भला? मेरे आवाज लगाने से इन का काम कैसे रुक गया? फिर तो इस से अच्छी चाबी और कोई हो ही नहीं सकती. अगर किसी का कोई काम न बनने देना हो तो बस पीछे से आवाज लगा दो. दिन की शुरुआत अपनी दोनों हथेलियों को देख कर करते हैं.

पूजापाठी तो इतने हैं, बस जब देखो, कभी हाथ में हनुमान चालीसा मिलेगा तो कभी शिव चालीसा. 2 घंटे सुबह पूजा, 2 घंटे रात को पूजा. बस पूजा ही पूजा और कोई न दूजा. खुशीखुशी महीने की आधी कमाई पंडितों को दान में दे आएंगे. वैसे कोई गरीब क्व1 भी मांगेगा तो उसे दुत्कार देंगे. जब देखो सासूजी और पतिदेव पंडितों का पेट भरते रहते हैं.

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