परेशानियां अब धुंधली हो गयी हैं और दिल की धड़कनें तेज.जी,हां लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार हर गुजरते दिन के साथ बढ़ते हुए रोमांच का पर्याय बन गया है.करोड़ों भारतीयों के दिलो-दिमाग में 4 मई 2020 एक नई मंजिल, एक नई उपलब्धि,एक नई सुबह बनकर आने जा रही है.क्योंकि कम से कम अभी तक तो बहुत से लोगों के दिल में यही विश्वास है कि 4 मई या उसके बाद का हिंदुस्तान वैसा नहीं होगा,जैसा 24 मार्च 2020 के पहले था.लेकिन ये बदलाव कैसे अपनी शक्ल इख्तियार करेगा,रोजमर्रा की जिंदगी में यह कैसे व्योहारिकता का जामा पहनेगा.इस सबको लेकर लोगों के मन में सैकड़ों सवाल हैं.अनगिनत हां और न हैं , मसलन-
-क्या मई और जून की आग बरसाती गर्मी के दिनों में भी स्कूल कॉलेज खुलेंगे ?
- क्या 4 मई के बाद मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग हमारी जिंदगी का परमानेंट हिस्सा हो जायेंगी ?
-क्या वर्चुअल क्लासरूम का प्रयोग सिर्फ लॉकडाउन के दिनों भर के लिए था या अब पढ़ाई का नियमित हिस्सा बन जाएगा ?
-वर्क फ्रॉम होम का क्या होगा ?
-क्या लॉकडाउन के बाद फिर से लोग पहले की तरह दफ्तर जा सकेंगे ?
-क्या मुंबई लोकल की ठसाठस भीड़ वाले दिन फिर से लौटेंगे या अब यह इतिहास बन जायेगी ?
-मेट्रोज की नाईट लाइफ का क्या होगा, क्या लॉकडाउन के बाद ये फिर से पहले की तरह हो पायेगी ?
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न जाने ऐसे कितने सवाल हैं जो करीब सवा महीने की तालाबंदी के खुलने से आ जुड़े हैं.ऐसा नहीं है कि ये सवाल महज हिंदुस्तानियों की कल्पना का हिस्सा हैं. दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन खुल गया है और वहां लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में जो तमाम अप्रत्याशित बदलाव् हुए हैं ,उनकी बिना पर भी ये तमाम अटकलबाजियां हो रही हैं. लॉकडाउन को लेकर हिंदुस्तानियों की इस ऊहापोह में इनका भी बहुत योगदान है.मसलन डेनमार्क में अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में खुल चुके लॉकडाउन के बाद स्कूलों में बच्चों को क्लासरूम में एक दूसरे से कम से कम छह फुट की दूरी पर अलग अलग डेस्क में बिठाया जा रहा है.भारतीय माँ-बाप को यह देखकर चिंता हो रही है कि क्या भारत में भी यह व्यवस्था लागू होगी,जहां आम स्कूलों के एक क्लास रूम में औसतन 50-60 बच्चे बैठते हैं ?
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