फेसबुक द्वारा लाखोंकरोड़ों यूजर्स की निजी जानकारी को विज्ञापनदाताओं के लिए व कैंब्रिज एनालिटिका को चुनावों में दुरुपयोग करने के लिए उपलब्ध कराने पर अमेरिका की संसदीय कमेटी ने फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग से जो जिरह की, उस से साफ हो गया कि आज के राजनीतिबाज, चाहे अमेरिका के हों या भारत के, बेहद सतही व अज्ञानी हैं. उन्हें वोटरों को भ्रमित करना ही आता है. मार्क जुकरबर्ग ने यह तो कई बार माना कि उन्होंने गलतियां की, पर 40-50 सांसद मिल कर मार्क जुकरबर्ग पर कोई आपराधिक मामला न बना सके. एक के बाद एक सांसद ने उन से सवाल पूछे पर सभी सवाल ऐसे थे
जैसे 5वीं कक्षा के छात्र आइंसटाइन की परीक्षा ले रहे हों. मार्क जुकरबर्ग बेहद आत्मविश्वास के साथ बिना लड़खड़ाए जवाब देते रहे और उलटे, यह साबित करते रहे कि सांसदों को खुद नहीं मालूम कि वे पूछना क्या चाहते हैं. आज दुनिया के सभी देशों में सत्ता चुने हुए जनप्रतिनिधियों के हाथों से फिसल कर बड़ी टैक, फार्मास्युटिकल, औटो, पैट्रोकैमिकल, खुदरा बिक्री करने वाली कंपनियों के हाथों में जाती जा रही हैं. देशों की सरकारें अब मंत्रालयों से नहीं, इन कंपनियों के हैडक्वार्टरों से चलने लगी हैं. कैंब्रिज एनालिटिका ने यह तक साबित कर दिया है कि इन कंपनियों ने अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के सभी बड़े लोकतंत्रों पर कब्जा सा कर लिया है और फेसबुक व व्हाट्सऐप ऐसे हथियार बन गए हैं जिन में शिकार खुद अपने हाथों अपने को जंजीरें पहनाते हैं ताकि वे खुद इन के इशारे पर चल सकें और इन के इशारों पर अपने मनचाहे जनप्रतिनिधियों को चलाएं.
सोशल मीडिया क्रांति जनता के हाथों में अधिकारों को देने की क्रांति नहीं है, बल्कि यह पलट क्रांति है जिस में जनता को गुलाम बनाया जा रहा है. जनता उसी तरह भ्रम में डाली जा रही है जैसे लेनिन ने रूस की जनता को डाला था और एडोल्फ हिटलर ने जरमनी की जनता को. परिणाम में आजादी और मुक्ति दिलाने के नाम पर उन्हें पीढि़यों तक गुलामी सहनी पड़ी. धर्मगुरु बातों के छल्लों की जंजीरें बनाते हैं और कई हजार वर्षों से आज तक उन का कहर दुनिया की 90 प्रतिशत जनता सह रही है. आज दुनियाभर में हिंसा का मुख्य कारण धर्मजनित सोच, अलगाव, नियम, आदेश हैं. फेसबुक और व्हाट्सऐप के सहारे मार्क जुकरबर्ग जैसे नए चक्रवृत्ति सम्राट पैदा हो गए हैं जो अपनी निरीह जनता की पलपल की जानकारी रखते हैं.
नरेंद्र मोदी की सरकार एक तरफ धर्म का सहारा और दूसरी तरफ कंप्यूटरइंटरनैट का सहारा ले कर आधार कार्ड के जरिए सब की जानकारी रखने वाली एकतरफा हुकूमत करना चाह रही है जिस में आप के पलपल की जानकारी मार्क जुकरबर्ग जैसों को रहे और आप केवल ऐसे कुत्ते हों जो गले में पड़ी जंजीर को सुरक्षा का निशान मानता है.