हिंदी के सफर को आगे बढ़ाने में हिंदी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्री महादेवी वर्मा की ‘हाट बाजार’ की भाषा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाट बाजार ने हिंदी को जनजन तक पहुंचाने का प्रयास किया है. वास्तव में हिंदी एक भाषा होने के साथसाथ एक सफर भी है. एक लंबे सफर में हिंदी कई पड़ावों और मोड़ों से गुजरी है. एक नदी की यात्रा है हिंदी, जिस ने अपने प्रवाह में कई धाराओं को जोड़ा है. हिंदी ने अपने संपर्क में आई हर बोलीभाषा को अपने में समाया है और इस तरह से हिंदी एक समृद्ध और लोकप्रिय भाषा बनती गई. हिंदी ने असहजता को त्याग कर सहजता को स्वीकारा है, यह हिंदी की विशेषता भी है. ‘रंग महल’ सुनने व बोलने में सहज और स्वाभाविक लगता है, इसीलिए ‘रंग महल’ ने ‘रंग अट्टालिका’ शब्द को स्वीकार नहीं किया है.

सहज अभिव्यक्ति भाषा की विशेषता होती है. इसी सहजता की शृंखला में वर्णमाला में अभूतपूर्व परिवर्तन आते गए हैं, जिस से हिंदी लिखनापढ़ना आसान हो गया, इस के बारे में विस्तृत बातें निम्न पंक्तियों में साफ होती हैं : पूर्व में ‘ख’ का ‘रव’ लिखा जाता था. इस से कई बार समझने व पढ़ने में भ्रम हो जाता था. इस के लिए कराची में आयोजित हिंदी सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि अगर ‘ख’ में ‘र’ के नीचे के हिस्से को ‘व’ के नीचे मिला कर लिखा जाए तो इस से ‘ख’ के संबंध में उत्पन्न भ्रम दूर हो जाएगा और इस तरह से ‘ख’ अस्तित्व में आ गया जो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिचायक था. अब ‘रवाना’ और ‘खाना’ में स्पष्ट अंतर नजर आने लगा.

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