पिछले साल मार्च में जब मैटरनिटी बैनिफिट्स बिल पास हुआ तो औरतों ने इस फैसले का स्वागत किया. मगर हाल ही में इंप्लौयमैंट सर्विसेज कंपनी टीमलीज द्वारा किए गए एक ताजा सर्वे की मानें तो बहुत संभव है कि सरकार का यह कदम महिलाओं की परेशानी खत्म करने के बजाय उसे बढ़ा भी सकता है. दरअसल, इस कानून के बनने के बाद छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां लड़कियों और महिलाओं को नौकरी देने में हिचकिचाने लगी हैं. 6 माह तक एक कर्मचारी को बिना काम के वेतन देना एक बड़ी चुनौती है और फिर इतने लंबे समय तक काम भी प्रभावित होगा. हो सकता है कि कंपनी को उस कर्मचारी का विकल्प ढूंढ़ना पड़े. ऐसे में एक काम के लिए कंपनी को डबल सैलरी का बोझ उठाना पड़ेगा. 6 माह लंबा समय होता है. यदि कंपनी नया कर्मचारी नहीं रखती तो भी वह महिला के महत्त्वपूर्ण काम किसी दूसरे कर्मचारी को सौंप सकती हैं.
टीमलीज द्वारा 350 स्टार्टअप्स और उद्योगों पर किए गए सर्वे में पाया गया कि 26% कंपनियां 6 माह की मैटरनिटी लीव की लागत को देखते हुए पुरुष कर्मचारी रखने के फैसले को प्राथमिकता देंगी. सर्वे में शामिल 40% कंपनियों ने स्वीकार किया कि वे महिलाओं को हायर तो करेंगी पर इस बात पर ध्यान देंगी कि क्या कैंडीडेट इतना लायक है कि इस लागत को वहन किया जाए. हालांकि 22% के मुताबिक मैटरनिटी लीव का समय बढ़ने के फैसले का उन के हायरिंग डिसीजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
सर्वे में शामिल कंपनियों/संगठनों में से 39% ने कहा कि इस कदम का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. वर्कप्लेस का माहौल बेहतर होगा, जबकि 35% कंपनियों के मुताबिक 6 माह की मैटरनिटी लीव से लागत और मुनाफा दोनों पर असर पड़ेगा. 10% के मुताबिक इस फैसले का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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