“एक ही शहर में रहते हुए अकेले रहने की बात समझ नहीं आती. यहां कौन-सी जगह की कमी है जो तुम अपना घर होते हुए भी किराए पर स्टूडियो अपार्टमेंट लेकर रहना चाहती हो?” भावना के स्वर से गुस्सा और हैरानी दोनों ही व्यक्त हो रहे थे. रमेश तो उससे भी ज्यादा शौक में थे, जो सोफे पर बैठे उन दोनों की बातचीत सुन रहे थे.

“मौम, मैंने कब कहा कि हमारे घर में जगह की कमी है, पर मैं स्पेस की कमी महसूस करती हूं. आई नीड माई स्पेस. वैसे भी यहां से मेरा औफिस बहुत दूर पड़ता है.”

भावना और रमेश ने बचपन से अपनी इकलौती बेटी कामना को सपोर्ट किया था, उसकी हर बात मानी थी, उसकी हर इच्छा की पूर्ति करने की हर संभव कोशिश की थी, फिर कहां और कैसे कमी रह गई थी कि उसे लग रहा था कि वह और आजादी मांग रही थी, अपने तरह से जीने के लिए वह मां-बाप से अलग रहना चाहती है.

“मुझे तो लगता है कि तुम्हें जरूरत से ज्यादा आजादी देकर हमसे भूल हुई है, वरना तुम इस तरह का फैसला लेने की हिम्मत नहीं करतीं.” रमेश सोफे से उठ कामना के पास आकर खड़े हो गए थे. गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया था. भावना को लगा कि कहीं पापा-बेटी में झड़प हो गई तो बात और बिगड़ सकती है, इसलिए कामना के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं,“ बेटा, कोई और बात तो नहीं. माना कि तुम अच्छी नौकरी कर रही हो, और फाइनेंशियली इंडिपेंडेट भी हो, पर इस तरह अलग रहना...लोग क्या कहेंगे...फिर हमारा मन भी तुम्हारे बिना नहीं लगेगा. उम्मीद है कि हमने तुम्हें ऐसे संस्कार दिए हैं कि तुम कोई गलत स्टेप नहीं उठाओगी. तुम मैच्योर हो और समझदार भी...फिर भी मां-बाप हमेशा बच्चों को सही गाइडेंस ही देते हैं.”

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