पाखी की बातों ने सुप्रिया की आँखों की नींद उड़ा दी थी. अभी कुछ देर पहले पाखी ने उसे पूना में विनय के साथ अपने लिव इन में रहने की बात सुझाई थी और उस पर दीदी की राय जाननी चाही थी. लेकिन सुप्रिया को ये बिल्कुल गवारा न हुआ और तभी दोनों बहनो के बीच एक छोटी सी बहस हो गयी थी.
छोटी बहन के लिव इन में रहने की बात सुप्रिया की समझ से परे थी. छोटे से शहर इटावा में रहने वाली सुप्रिया अपनी बहन की इस अति आधुनिक विचारधारा को समझ पाने मे असमर्थ थी. उसने और विनोद ने कितने लाड़ प्यार से पाखी को पाला है. अपने बच्चों और उसमे कभी कोई भेद न किया. पाखी को कभी माँ बाउजी की कमी महसूस न होने दी. ये फ़ैसला लेने से पहले कम से कम उसने अपने जीजाजी की इज्ज़त के बारे में तो सोचा होता.
जब उसके जीजाजी उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठा रहे हैं, तो आख़िर पाखी के दिमाग में ये कौन सी धुन सवार हो गयी है. अगर वो विवेक से प्यार करती है तो शादी कर आराम से उसके साथ रहे. कम से जग हँसाई तो न होगी.
दस साल की थी पाखी जब माँ बाउजी एक दुर्घटना में चल बसे थे. तब से पाखी को उसने माँ बनकर पाला और अब जब वो बड़ी हुई तो इस तरह की बेतुकी बातें...छी..उसे तो सोचते हुए भी शर्म आ रही है. विनोद भी जाने क्या सोचेंगे. ख़ुद उसके बच्चे भी मौसी की देखादेखी उसके नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करेंगे तो घर में क्या तूफान उठेगा...सोचकर वह सिहर उठी. ये लिव इन क्या बला है, कैसे बिना आगा पीछा सोचे ये बच्चे आजकल अपना निर्णय तुरंत सुना देते हैं. उन्हें न किसी की इज्ज़त की परवाह है ना ही समाज या नैतिक मूल्यों की.