इलाहाबाद की लखनऊ बैंच में एक याचिकाकर्ता ने पीआईएल दाखिल की. जिस में हवाला दिया गया लाउडस्पीकर को ले कर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का जो साल 2000 में जारी किया गया था. साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए आदेश जारी किया था कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर का सार्वजनिक प्रयोग नहीं किया जाएगा. तब से ले कर अब तक करीब 17 साल हो चुके हैं लेकिन सरकार लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए सख्त फैसला नहीं ले पाई है. अब इस याचिका ने एक बार फिर इस बहस को हवा दे दी है कि सरकार धार्मिक आयोजनों के दौरान नवरात्रों व जगरातों, कीर्तन में ध्वनि प्रदूषण करते लाउडस्पीकरों पर अंकुश कब लगाएगी.

धार्मिक आोजनों में लाउडस्पीकर के बढ़ते प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण का खतरा बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि बिना किसी भेदभाव के धर्मस्थलों से बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण के खतरे को रोका जाए. यह बहाना अब बंद होना चाहिए कि एक धर्म के धर्मस्थल में लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है तो दूसरे धर्म में यह क्यों बंद किया जाए. प्लास्टिक से ले कर दूसरे तमाम तरह के प्रदूषणों को ले कर आवाज बुलंद करने वाली संस्थाओं को ध्वनि प्रदूषण पर भी बोलना चाहिए और धर्मस्थलों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोकने की मांग करनी चाहिए.

‘कानून सब के लिए बराबर होता है. अगर धर्मस्थलों से आवाज गूंजने पर रोक की बात है तो किसी भी धर्मस्थल से आवाज नहीं आनी चाहिए,’ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के कन्वैंशन सैंटर में लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में यह कहा. मुख्यमंत्री का मकसद यह था कि किसी भी धर्मस्थल से आवाज नहीं आनी चाहिए. ऐसे में उन्हें बिना किसी भेदभाव के हर धार्मिक स्थल से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए.

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