सोशल मीडिया पर धामकी धंधेबाजी आजकल खूब चमक रही है. न सिर्फ अपने पूजे जाने वाले देवीदेवताओं के फोटो सुबहसबेरे अपने सारे व्हाट्सएप गु्रपों पर डालने का आदेश हरेक के गुरू पंडे समयसमय पर देते रहते हैं. पढ़ीलिखी समझदार औरतें भी नहीं समझ पातीं कि जिस देवीदेवता को सब का कल्याणकारी और सर्वव्यापी माना जाता है वह अमेरिका की बनी तकनीक और कोरिया के बने मोबाइल के सहारे धर्म प्रचार में लग जाती है.

इसी के साथ हिंदू मुस्लिम वैरभाव भी चालू हो जाता है. धर्म के पिताओ ने बाकायदा फैक्टरियां खोल रखी हैं जिस में दसियों लोग एक साथ बैठ कर इतिहास और तथ्यों को तोड़मरोड़ वह फैलाते रहते हैं. इस फैक्टरियों में नकली मुसलिम बने कैरेक्टर ऐसा काम करते नजर आ सकते हैं जो ङ्क्षहदूमुसलिम बैर की आग पर पैट्रोल डाले.

ऐसे हर काम से फायदा पूजापाठ के धंधेबाजों को होता है. मंदिरों में भीड़ बढ़ जाती है. चंदा ज्यादा आने लगता है. छोटेमोटे त्यौहारों पर भी पंडितों की घरों में हाजिरी जरूरी हो जाती है जो स्लिक का कुरता पहने धर्म कार्य कराने आते हैं.

दिक्कत यह है कि यह बकवास, झूठी कहानियों, नकली वीडियो पोस्ट करने वाले गालीगलौच की भाषा को सोशल मीडिया पर इस्तेमाल करने के पूरी तरह आदी हो जाते है और यही शब्द अपने दोस्तों, सहेलियों रिश्तेदारों या जिन से व्यापारिक या व्यावसायिक संबंध हो उन पर भी लागू भी लागू होने लगते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही कहा कि सोशल मीडिया पर भाषा का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए क्योंकि एक गलत शब्द दूसरे को बुरी तरह चुभ भी सकती है और उस की रेपूटेशन को हानि पहुंचा सकता है. एक मामले में एक डिफेमेशस मामले में राहत देने से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया का मनमाना दुरुपयोग किया जाना किसी तरह माफ नहीं किया जाता. यहां 2 जनों के बीच मामला राजनीतिक था पर किसी भी मामले में कोई परिचित भी नाराज हो कर अदालत की शरण ले सकता है और तक मैसेज डिलीट करने या एपोंलोजी देेने का कदम भी सुप्रीमकोर्ट के हिसाब से काफी नहीं है. गलत पोस्ट के लिए कोई भी जिम्मेदार हो सकता है.

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