मैं लड़की क्यों पैदा हुई? भाई के लिए टोकाटाकी नहीं? हर समय मुझे ही क्यों नसीहत दी जाती है? ये सब सवाल अधिकतर लड़कियों के मन में बगावत कर रहे होते हैं, मानसिक द्वंद्व चल रहा होता है और कई बार लड़कियां गलत कदम भी उठा लेती हैं.
दुनिया बहुत अलग है. जब लड़की कुछ गलत करती है तो सब लोग उस पर उंगली उठाते हैं. लड़की सोचने पर मजबूर हो जाती है कि उस ने क्या गलत किया, जो उसे लड़की के रूप में जन्म मिला. तुम लड़की हो, लड़कों से अच्छा नहीं कर सकती, लड़की की तरह रहो आदि. समाज यही सब कहता है. उन का समय भी अच्छा होगा जो खुद समाज में अपनी नई पहचान बनाती हैं, पर कुछ को तो घर से बाहर कदम रखते ही बहुत बड़ी सजा मिलती है.
अकसर खुद अपने घर के बड़े सुबह से शाम तक बस, यही नसीहत देते रहते हैं, ‘कभी किसी लड़के से मत बोलो,’ ‘वह तुम्हें बिगाड़ देगा,’ ‘तुम हमारी नाक कटा दोगी,’ वगैरा. लड़कियों को हमेशा ऐसी नसीहत दी जाती है और वह चुपचाप सब सहन कर लेती हैं. लड़की को कितनी मानसिक पीड़ा होती है, उसे कितना तनाव झेलना पड़ता है, शायद यह आप सोच भी नहीं सकते. आज भी अधिकांश घरों में लड़कियों पर ढेरों पाबंदियां हैं. यह क्या बलात्कार से कम है?
उत्तराखंड, काठगोदाम की ज्योति ने इस तरह की पाबंदियों से आजिज आ कर खुदकुशी कर ली, लेकिन आत्महत्या से पहले उस ने एक सुसाइड नोट लिखा जिसे पढ़ कर सब स्तब्ध रह गए. 7वीं क्लास की इस बच्ची ने नोट में लड़कियों के भीतर छिपा दर्द, लड़कालड़की के बीच भेदभाव व पाबंदियों को समाज के सामने रखने की मार्मिक कोशिश की थी. यह न सिर्फ सुसाइड नोट था, बल्कि समाज की रूढि़यों और लड़कियों की बंदिशों पर करारा तमाचा भी था. लड़की होेने के अभिशाप से ज्योति तो हमेशा के लिए बुझ गई, पर बहुत से सवाल खड़े कर गई.
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