निर्मम हत्या के मामले में भी अपराधी किस तरह अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं कि किसी तरह छूट जाएं. 1984 में एक घर में भरे दिन में बंदूक से की गई हत्या के 2 अपराधी भाई 2018 तक अदालतों में छूटने की गुहार लगाते रहे पर न तो हाई कोर्ट ने और न ही सुप्रीम कोर्ट ने 35 साल बाद भी उन की बात मानी.
मामला केवल एक मोटरसाइकिल का था. 1981 में हुई शादी में पहले ही दिन लगता है खटपट हो गई और 8 दिन बाद पत्नी मायके चली गई. 3 साल बाद पति पत्नी को घर ले तो आया पर 3 दिन बाद ही उस की डबल बैरल गन से दोपहर 4 बजे हत्या कर दी शायद यह सोच कर कि ठाकुर परिवार को कौन हाथ लगाएगा.
चाहे हम कोसते रहें कि देश में न्याय नहीं है और इसे खरीदा जा सकता है पर इस मामले में तो पति, उस के भाई और मां को गिरफ्तार कर लिया गया. सैशन कोर्ट ने उन्हें आजीवन कैद का दंड दिया. 1984 के अपराध की सैशन कोर्ट के फैसले की अपील पर 2014 में उच्च न्यायालय ने 2 भाइयों की सजा तो बरकरार रखी पर मां को छोड़ दिया- 30 साल बाद. पता नहीं इन 30 सालों में वह कितने साल जेल में रही.
2 भाई सुप्रीम कोर्ट में आए पर सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें राहत नहीं दी और उन का अपराध बरकरार रखा.
चाहे जमाना 1980 का हो या 2020 का, मारपीट, हत्या कर के झगड़े सुलझाना अपनेआप में गलत है और खासतौर पर बेकुसूर औरतों पर गुस्सा निकालना जो अपने फैसले खुद नहीं कर सकतीं.