अंतिम किस्त
पिछले अंक में आप ने पढ़ा:
पिछले कुछ सालों से ऐसे अपराधों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, जिन्हें किशोरों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है. इन अपराधों में चोरी, डकैती, स्नैचिंग, हत्या और यहां तक कि बलात्कार भी शामिल हैं. जो बच्चे देश के भविष्य हैं, अगर समाज द्वारा स्थापित मूल्यों और मान्यताओं से भटक कर आपराधिक कार्यों में लिप्त होंगे, तो यह बहुत कुछ सोचने को विवश करता है.
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बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? बाल अपराध क्यों जन्म लेते हैं? मनुष्य के अंदर हिंसक और अपराधी भाव क्यों जन्म लेते हैं? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण करना होगा. इस के 2 मुख्य कारण हैं- स्वभावगत और परिवेशगत. इन 2 कारणों के कई उप कारण भी हो सकते हैं, परंतु अगर हम उपरोक्त दोनों कारणों को समग्र रूप से समझ लें, तो उप कारण अपनेआप ही स्पष्ट हो जाते हैं.
पहला: स्वभावगत कारण के मुख्य लक्षण होते हैं- बालक का उग्र और क्रोधी स्वभाव, जिद्दी और हठी होना, किसी चीज को प्राप्त करने के लिए अनुचित हठ, छोटीछोटी बातों पर हंगामा खड़ा करना, बातबात पर हिंसक आचरण आदि. ये लक्षण जब सीमा पार कर जाते हैं, तो अपराध का रूप धारण कर लेते हैं.
दूसरा: परिवेशगत कारण बहुत स्पष्ट होते हैं- अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, कुसंगति, आलस, लालच, अतिमहत्त्वाकांक्षा, कामचोरी, बिना श्रम के बहुत कुछ प्राप्त करने की चाह आदि.
अपराधी कोई भी हो, उस के आपराधिक लक्षण समयसमय पर परिलक्षित होते रहते हैं, परंतु परिवार और समाज उन्हें समय पर पहचान नहीं पाता या पहचान कर भी अनजान बना रहता है. जैसेकि मातापिता अत्यधिक लाड़प्यार में अपने बेटे की बुराइयों को उपेक्षित करते रहते हैं और बाद में बच्चों की बुराइयां उन्हें बड़े अपराध की तरफ आकृष्ट करती हैं. मातापिता को सुध तब आती है, जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है.