मासिकधर्म शुरू हो गया है, अब रसोईघर में नहीं जाना, मंदिर में नहीं जाना, पूजा नहीं करना, इन दिनों सफेद कपड़े मत पहनना, खेलनाकूदना, साइकिल चलाना सब बंद. दरअसल, ये सारे पीरियड्स टैबू महिलाओं की दिनचर्या को बांधने वाले हैं, जिन का कोई साइंटिफिक आधार नहीं है. ये टैबू छोटी बच्चियों पर सब से ज्यादा बुरा असर डालते हैं.
पीरियड्स से जुड़ी ढेर सारी भ्रांतियां हैं, जो पूरे देश में प्रचलित हैं. आप चाहे किसी भी शहर में हों, हर परिवार में इन से जुड़े जवाबों की एकरूपता आप को चौंका देगी. मगर अब वह वक्त नहीं रहा जब पीरियड्स से जुड़े सख्त नियमकायदे चल पाएं. ये बेकार की बातें आप को डिस्टर्ब करने के अलावा और कुछ नहीं दे सकतीं. इन्हें पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाना ही बेहतर होगा.
प्रतिबंध व रोकटोक
एक पढ़ीलिखी व खुले विचारों वाली महिला साधना शर्मा कहती हैं, ‘‘कुछ प्रतिबंध व रोकटोक तो हमारे घर में भी है, लेकिन इतनी सख्त नहीं कि कोई मुश्किल हो. लेकिन कई जगहों पर इतनी कठोर भी है कि जीना दुश्वार हो जाता है. इस से मैं पहली बार तब रूबरू हुई जब कुछ साल पहले दूसरे शहर में अपने करीबी रिश्तेदार के घर जाना हुआ. उसी दौरान मासिकधर्म शुरू हो गया.
‘‘मेजबान घर की बड़ी बहू को पता चला तो उन्होंने डूज ऐंड डोंट्स की लंबी लिस्ट समझाई कि उन के घर में इन दिनों क्याक्या नियमकायदे चलते हैं. लेकिन मैं ने सारे नियमों को मानने से इनकार कर दिया. मैं ने साफ कह दिया कि ज्यादा रोकटोक की तो मैं यहां से वापस चली जाऊंगी. मेरी नाराजगी का आशय थोड़ा गंभीर विषय था. अत: मेरी धमकी काम कर गई.
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