मुंबई की 24 साल की मनीषा जब गर्भवती हुई तो कुछ परेशान सी रहने लगी. वह न तो अपनी मनपसंद का खाना बना सकती थी और न ही खा सकती थी, क्योंकि परिवार में सासससुर हमेशा उसे अच्छा खाना बना कर खाने पर ताने देते थे. अगर मनीषा का पति अपने मांबाप से कुछ कहता तो वे उसे भी भलाबुरा कहते. एक दिन तो इतनी कहासुनी हुई कि सासससुर ने मनीषा को घर से निकल जाने को कह दिया. मनीषा के घर छोड़ने के कदम में उस के पति ने भी उस का साथ दिया और दोनों ने बड़ी मुश्किल से अपनी अलग गृहस्थी जमाई. अब मनीषा को इस बात का डर सताने लगा था कि पता नहीं उस की डिलिवरी ठीक से होगी या नहीं. अपनेआप को काफी संभालने के बाद भी उस की प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई. बच्ची ने काफी समय बाद बोलनाचलना सीखा.
नवजात पर बुरा असर ऐसी कई घटनाएं हैं जहां डिलिवरी के समय या बाद में बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास कम होने पर डाक्टर जब इस की बारीकी से जांच करते हैं तब कई बार घरेलू हिंसा की बात सामने आती है. एक सर्वे में पाया गया कि 5 प्रैगनैंट महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार अवश्य होती है. इन में से कुछ महिलाएं तो पहले इस बारे में बता देती हैं तो कुछ छिपाती हैं, जिस का पता डिलिवरी के बाद चलता है. यह घरेलू हिंसा ज्यादातर 21 से 35 वर्ष की महिलाओं के साथ होती है और खासकर गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली महिलाओं के साथ और कुछ खास समुदाय और उच्च वर्ग की महिलाओं के साथ.
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