कोलकाता के एक निजी स्कूल की एलकेजी कक्षा की सालाना फीस लगभग 2 लाख रुपए है. तकरीबन ऐसा ही हाल हाईफाई कहे जाने वाले अंगरेजी माध्यम स्कूलों का हर शहर में है. इतनी महंगी फीस ले कर भला ये स्कूल बच्चों को कौन सा ज्ञान का खजाना मुहैया करा रहे हैं, पता नहीं. हां, इतना जरूर है कि ऐसे स्कूलों में ज्ञान कम, ढोंग ज्यादा परोसा जाता है. फिर भी महंगी फीस वाले स्कूलों की तादाद बढ़ी है, लोगों में इन का क्रेज बढ़ा है. साथ ही, बढ़ा है बच्चों द्वारा मातापिता से किया जा रहा गैरजिम्मेदाराना व्यवहार और बच्चों में डिप्रैशन.
शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर यह लूट अब आम है. इस पर गौर करने वाला कोई नहीं है. सरकार इसे सरप्लस के रूप में देखती है और मातापिता नई उम्मीद के रूप में. पैसे वाले पेरैंट्स इस बात से खुश हैं कि उन का बच्चा हाईफाई स्कूल में पढ़ रहा है जबकि कम आमदनी वाले मातापिता इस बात को ले कर फिक्रमंद हैं कि उन का बच्चा हाईफाई स्कूल में नहीं पढ़ पा रहा है. सारे पेरैंट्स अपनी सोच में गुम हैं. कोई बच्चों के बारे में सोच ही नहीं रहा कि वे पढ़ क्या रहे हैं, किसलिए और क्यों पढ़ रहे हैं?
पैसा नहीं अच्छी शिक्षा की गारंटी
अच्छी शिक्षा का पैमाना मोटी रकम नहीं है. जब कोई बच्चा नर्सरी कक्षा में पढ़ रहा होता है तो उसे जितनी ज्ञान की जरूरत होती है, उतना ही दिया जाना चाहिए. चाहे वह कम सुविधा दे कर हो या ज्यादा. अगर नर्सरी के बच्चों पर गैरजरूरी दबाव बना रहे हैं तो वह विकास तो नहीं करेगा, डिप्रैशन में जरूर चला जाएगा. आजकल के ज्यादातर हाईफाई स्कूल यही काम कर रहे हैं. रही बात इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधा की, तब भी इस तरह से पैसा वसूली कहीं से भी जायज नहीं.