चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में भारत सब से बड़े कंज्यूमर व डिस्ट्रीब्यूटर के तौर पर उभर रहा है. साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ‘स्कूल गर्ल’, ‘टीन्स’, ‘देसी गर्ल्स’ जैसे टौप सर्च बताते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का बाजार कितना बड़ा है. जाहिर है इस के असली टारगेट स्कूली बच्चे ज्यादा हैं. इंटरनैट पर तैरती पोर्नोग्राफी व फ्री इंटरनैट डाटा सेवाओं ने ज्यादातर बच्चों के स्मार्टफोन में एडल्ट कंटैंट के फ्लो में इजाफा किया है.

एक शोध के मुताबिक, 12 से 18 वर्ष तक के 90 प्रतिशत लड़के व 60 प्रतिशत लड़कियां पोर्नोग्राफी की जद में हैं. ये आंकड़े वाकई चिंताजनक हैं.

कुछ माह पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से निबटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं. सरकार ने जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली 3 सदस्यीय पीठ से यह भी कहा था कि उस ने सीबीएसई से स्कूलों में जैमर लगाने पर विचार करने को कहा ताकि छात्रों को पोर्नोग्राफी साइट्स से दूर रखा जा सके. लेकिन 2-3 महीनों के बावजूद नतीजा कुछ नहीं निकला. सरकार की कमेटी और वादों की लापरवाही के तले सारे मुद्दे दब गए. सरकार भले ही सुप्रीम कोर्ट को करीब 3,523 चाइल्ड पोर्नोग्राफी साइट्स पर रोक लगाने का दावा करती हो लेकिन उन्हीं साइटों पर यह काम बदस्तूर जारी है.

जरूरी है इंटरनैट लेकिन...

आजकल पढ़नेलिखने वाले बच्चों को रैफरैंस जुटाने के लिए इंटरनैट जरूरी हो गया है. जाहिर है आज घरघर में इंटरनैट कनैक्शन हैं. और घर पर इंटरनैट होने का मतलब है पूरी दुनिया का कंप्यूटर के स्क्रीन पर सिमट कर आ जाना. इस में दोराय नहीं कि यह बहुत ही अच्छी बात है. बच्चे इंटरनैट सर्च करना पसंद भी करते हैं. लेकिन यह भी सचाई है कि कुछ किशोर उम्र के बच्चे इस का बेजा इस्तेमाल भी करते हैं.

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