मनुष्य को हमेशा पशुओं की ताकत से ईर्ष्या रही है. उस की इच्छा हमेशा ही पौराणिक युग के पशुओं जैसे गुण रखने वाले मानवों की तरह संपूर्णता पाने की रही है. हर सभ्यता में परियों, दैत्यों, उड़ने वाले देवताओं की कल्पनाओं की भरमार रही है. चाहे वे ग्रीक हों, रोमन हों, भिक्षु हों या भारत के.
मिथक और लोककथाएं मानवपशु मिश्रित प्राणियों से भरी रही हैं. इन में से बहुत से पात्रों को देवत्व का दर्जा दे दिया गया है चाहे ईश्वर या फिर शैतान के रूप में. ईसाई कल्पना के अनुसार शैतान को मानव शरीर, बकरी के सींगों वाले, भेड़ की खाल और नाककान वाले तथा जंगली सूअर के दांतों वाले पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है.
यह कैसा अंधविश्वास
मानवपशु मिश्रित पात्र हजारों साल पुरानी गुफाओं में बने चित्रों में दिखते हैं. इन में पुजारियों को पशुओं की तरह की ताकत पाते दर्शाया गया है. भारत में मानवपशु मिश्रित पात्र का सब से लोकप्रिय उदाहरण गणेश का है. भारतीय मिथकों में इन मिश्रित पात्रों को ही पूजनीय नहीं बनाया जाता है, यहां कुर्मा-कछुए, मत्स्य-मछली, गरुड़-बाज, जामवंत-भालू, कामधेनु-गाय, नाग-सर्प को पूजा जाता रहा है.
पेन ग्रीकमिथक में एक देवता है, जिस का ऊपर का बदन मानव का है पर निचला हिस्सा सींग, टांगें बकरी की हैं. वह जंगलों, खेतों, भेड़ों के झुंडों, प्रकृति और संगीत का देवता है. वह अपनी आवाज से डराता है. अंगरेजी का शब्द पैनिक उसी से बना है. जब विशाल दैत्यों टाइटनों ने ग्रीक देवताओं पर हमला किया तो पेन ने ही अपनी आवाज निकाल कर उन्हें डरा कर भगाया.