आसाराम व रामरहीम के बाद वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का हिंदुत्व का नया वाहक पिछले दिनों प्रकट हुआ है. धर्म की नफरतों की दीवारों पर रंगाईपुताई करता अध्यात्म का यह नया देवता अवतारी बन कर उभरा तो देशभर में चर्चा का विषय बन गया. बने भी क्यों नहीं, क्योंकि अब तक जितने भी बाबा के नाम मीडिया ने उछाले हैं, वे ज्यादातर गैरब्राह्मण थे और यह ब्राह्मण है. ब्राह्मण बाबा मीडिया व ब्राह्मणवादी उद्योगपतियों की मदद से बचते रहे हैं, लेकिन यह मामला कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया. इसलिए जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए कानून के लूपहोल में खेल रहे हैं.

अब तक तकरीबन 500 लड़कियां इस हैवान के चंगुल से छुड़ाई जा चुकी हैं. वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का यह तथाकथित नया अवतारी अपनेआप को कृष्ण अवतार बता रहा है. वह 5 हजार से अधिक लड़कियों से बलात्कार का टारगेट पूरा कर चुका है और उस का असली टारगेट, 16,000 लड़कियों का बलात्कार कर हासिल करना था, लेकिन इस बीच उस की करतूत का परदाफाश हो गया. देश की पुलिस व कानूनी एजेंसियां बाबा को खोजने में अभी तक नाकाम रही हैं. वैसे, हिंदू धर्म में बलात्कार को अनैतिक नहीं बताया गया है. पुराण भरे पड़े हैं श्रापों व देवदासियों के बहाने महिलाओं के शोषण के किस्सों से. मत्स्यगंधा जैसी मैलीकुचैली महिलाओं को भी ऋषि पाराशर जैसे लोगों ने नहीं छोड़ा. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि थोड़ा सा भी खुलापन ले कर शृंगार करने वाली महिलाओं की उस दौर में क्या हालत होती रही होगी.

हवस के तो ये इतने भूखे थे कि गौतम को बेवकूफ बना कर नहाने भेज दिया और पीछे अहल्या के साथ बलात्कार कर डाला. क्या तभी इन लोगों ने नारा चलाया कि ब्रह्ममुहूर्त में नहाना शुभ रहता है, क्योंकि पति अंधेरे में नदीतालाब में नहाने चला जाए और इन को पीछे मौका मिल जाए. शंकर तपस्या में थे और पीछे, पार्वती के गणेश पैदा हो गए. तर्क तो देखो इन के कि मैल से पैदा हो गए. जैसे पार्वती सदियों से नहीं नहाई हों और मैल को उतार कर पुतला बना लिया हो. कुंती व माद्री के जो 6 लड़के हुए उन में भी पांडु की कोई भूमिका नहीं थी. एक तो शादी से पहले ही पैदा हो गया. बता दिया गया कि महर्षि दुर्वासा ने कुंती को वरदान दे रखा था कि वह जब चाहे जिस देवता को बुला कर बच्चा पैदा कर सकती थी.

धर्म को बुला कर युधिष्ठिर पैदा कर लिया, वायुदेव से भीम पैदा करवा लिया व इंद्र को बुला कर अर्जुन पैदा करवा लिया. फिर यह वरदान माद्री को ट्रांसफर कर दिया, जिस के बूते माद्री ने अश्विनी को बुला कर नकुल व सहदेव पैदा करवा लिए. ऋषि दुर्वासा तो तीनों युगों में पाए जाते हैं. आदमी थे या कुछ और? हर कालखंड में ऐसे मामलों के इर्दगिर्द ही नजर आता था. कहीं यह वीरेंद्र देव दीक्षित महर्षि दुर्वासा का कलियुगी रूप तो नहीं है. जब इन तथाकथित देवताओं, ऋषिमुनियों की मौज कम होने लगी तो इन लोगों ने वर्तमान को कलियुग कहना शुरू कर दिया. इन को तो वह वाला सतयुग चाहिए जहां ये कभी भी किसी भी महिला को पकड़ कर आनंद की अनुभूति ले सकें और किसी भी प्रकार की रोकटोक न हो.

वीरेंद्र देव दीक्षित ने क्या गुनाह किया है. अपने पूर्वजों की तरह जीवन जीने की कोशिश की थी. अब असली शिलाजीत मिली नहीं, तो कुछ नकली दवाइयां खा ली थीं, इसलिए टारगेट थोड़ा हाई रख लिया था. इस में इस की गलती थोड़े ही है. यह तो कलियुगी दवाइयां ही खराब निकली हैं. सत्यवती, वाचा, अंबिका, अंबालिका, अहल्या, कुंती, माद्री आदि को एक जगह एकत्रित कर रहा था बेचारा. जब इस के पास आतीं तो उम्र 16 से 19 साल तय थी, लेकिन जब उम्रसीमा क्रौस हो जाती तो वह दूसरों के इस्तेमाल के लिए भी तो व्यवस्था करता था. देवदासियों की तरह खानेपीने का इंतजाम कर के वह अपने शिष्यों व अन्य संगी देवताओं के लिए भी तो माकूल बंदोबस्त किया था.

आप लोग कितने ही नाटक कर लो, लेकिन धर्म में इस तरह के कारनामे हर ग्रंथ में बोलते हैं. मध्ययुग में राम महिमा गातेगाते तुलसीदास को औरत ने मना कर दिया तो दुनिया की सारी महिलाओं को ताड़न की वस्तु बता दिया और ये लोग गोस्वामी तुलसीदासजी की चौपाइयां हर गलीमहल्ले में ले कर घूम रहे हैं. ये गागा कर बता रहे हैं कि महिलाएं सिर्फ उपभोग के लिए हैं, उपयोग में लें और लताड़ लगाएं. अब वीरेंद्र देव दीक्षित उस स्वर्णकाल के हिसाब से, अपने ग्रंथों के हिसाब से लड़कियों को उपयोग में ही तो ले रहा था. अब बालिगनाबालिग की सीमा तो इन्होंने तय की नहीं थी न. ये तो कलियुगी चोंचले हैं. क्या औरतों के बिकने की मंडियां लगने वाला रामराज्य चाहिए, देवदासियों के रूप में मंदिरों को नईनई लड़कियों का इंतजाम वाला स्वर्णयुग चाहिए?

स्वर्णकाल का भोग यह ब्राह्मण देवता यानी वीरेंद्र देव दीक्षित गिरफ्त में इतनी आसानी से नहीं आएगा क्योंकि इस ने बहुत सारे देवताओं के लिए इंतजाम किए होंगे. इस का टारगेट तो 16,000 महिलाओं से बलात्कार करने का था, इसलिए एक बार श्राप दिया और आगे बढ़ गया होगा. फिर तो शिष्यों के लिए यही वरदान बन जाता होगा. आध्यात्मिक विश्वविद्यालय बनाया है व जगहजगह उस की शाखाएं खोली गई थीं तो यह काम अकेला ब्राह्मण देवता तो कर नहीं सकता.

कलियुग गुप्तकाल के बाद ही तो आया है. 1200-1300 साल तो छद्म कलियुग के थे, असली कलियुग तो आजादी के बाद ही आया है. अब देखो, बेचारा छिप कर स्वर्णकाल का भोग कर रहा था और हम लोगों ने हंगामा कर दिया. जिस तरह के छापे, जांच व मीडिया कवरेज हो रही है, उस के हिसाब से वीरेंद्र देव दीक्षित नामक ब्राह्मण देवता सोने की तरह तप कर, बेदाग हो कर निकलेगा.

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