लगभग सभी धर्मों व संप्रदायों के लोग, एक सांस में अपने धर्म को ईश्वर की ओर जाने वाले इकलौते रास्ते के रूप में पेश करते हैं. यह ऐसा रास्ता है जहां मोहमाया अर्थात भौतिक जगत, खासतौर से धनसंपत्ति के प्रति लोभ समाप्त हो जाता है और अंतत: भक्त और भगवान के बीच कोई भेद नहीं रह जाता. तब उस ‘सर्वोच्च सत्ता’ से साक्षात्कार होता है. धर्म बताता है कि पैसा उस रास्ते की एक रुकावट है क्योंकि यह मनुष्य को भौतिक मायाजाल में उलझाए रख कर ईश्वर का ध्यान करने में बाधा उत्पन्न करता है.

ऐसे लोगों को महान धार्मिक व्यक्तित्व के तौर पर सम्मान के साथ जनता के सामने रखा गया जिन्होंने आध्यात्मिक रास्ते की ओर बढ़ने के लिए भौतिक सुखसुविधा को लात मार दी. ये उदाहरण समाज के धनी और गरीब तबकों के लिए अलगअलग तरह से प्रेरणास्रोत का कार्य करते हैं. संपन्न लोगों के लिए संदेश है कि तुम्हारी भौतिक उपलब्धियां तुच्छ हैं क्योंकि ये ईश्वर से सामना होने के समय तुम्हारा साथ नहीं देंगी. सबकुछ पीछे छूट जाएगा, इसलिए भगवान, अल्लाह या गौड से डरो. वह तुम्हारे अच्छेबुरे कर्मों का हिसाब रखता है और उसी के अनुसार तुम्हारे बारे में आखिरी फैसला करेगा.

वास्तव में इस तरह की धार्मिक विचारधाराओं ने समाज के संपन्न तबके को काबू में रखने की कोशिश की. पैसे की ताकत के चलते हो सकने वाली उस की मनमानियों को रोकने का प्रयास किया. दूसरी तरफ गरीबों के लिए एक प्रतीकात्मक संवेदना थी कि गरीबी अभिशाप नहीं है. हिंदू धर्म में ऐसे दृष्टांतों, किंवदंतियों, दंतकथाआें की भरमार है कि गरीब भक्तों ने किस तरह धैर्यपूर्वक अपनी भक्ति से भगवान को प्रसन्न किया और वरदान हासिल कर के अपनी कायापलट कर ली या सीधे ‘बैकुंठ’ में वास करने लगे.

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