अपराधी औरतों को जेलों में रखना कोई नई बात नहीं है और न ही यह नई बात है कि औरतें भी जघन्य अपराध करती हैं. आदमियों की तरह औरतें भी हर तरह के अपराध करती रही हैं और कानून की गिरफ्त में आने पर उन्हें जेल में रखना तो जरूरी हो ही जाता है. पर यह ध्यान रखना चाहिए कि जहां आदमियों के जेल में जाने के बाद घर किसी न किसी तरह चल जाता है, औरतों के जेल जाने के बाद घर टूटने पर बच्चे ही नहीं औरत के मातापिता, सासससुर, पति सभी लाचार और एक अनकही सजा भुगतने को मजबूर हो जाते हैं. सरकार कोड औफ क्रिमिनल प्रोसीजर में अब बदलाव ला कर उन की जेल की यातना को कम करने पर विचार कर रही है. इन सुधारों में से एक है विचाराधीन कैदी औरतों को जमानत देने का.

विचाराधीन कैदी वे हैं जिन्हें अभी अदालत ने मामले की पूरी सुनवाई कर के अपराधी नहीं माना और सजा नहीं दी है. इन औरतों को सुधार के नाम पर आरोप लगाए अपराध की एकतिहाई अवधि जेल में बिताने के बाद जमानत पर छोड़ने की बात कही जा रही है. यह एकदम बकवास है. औरतों को बिना फैसला हुए असल में कैदी के रूप में रखना ही नहीं चाहिए. उन्हें पूछताछ और तथ्य संग्रह के बाद जमानत पर छोड़ देना चाहिए.

अगर औरतों के अपराध संगीन हों तो भी एक ऐसे समाज में जिस में सारे कानून और सारी व्यवस्था आदमियों के हाथों में हो और जो औरतों को पैदाइशी खेलने की गुडि़या समझते हों उन्हें जेल में रख कर एक और अन्याय करा जाता है. औरतें आदमियों से कई मानों में अलग होती हैं चाहे वे कितनी ही कू्रर क्यों न हों, कितनी ही बेईमान क्यों न हों. उन के अपराधों में एक जिम्मेदारी का एहसास भी छिपा रहता है और बहुत से अपराध तो वे केवल आदमियों के कहने, उन्हें खुश

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