साल में एक बार आने वाला पितृपक्ष एक ऐसा चरण है जब हिंदू धर्म के लोग अपने पूर्वजों के सम्मान में एक रस्म अदा करते हैं, जिसे श्राद्ध कहा जाता है.

वैसे तो यह अपने पूर्वजों को याद करने का अवसर होता है, मगर इस का प्राचीनकाल से धर्म के ठेकेदारों और पोंगापंथियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है.

हम बचपन से देखते आ रहे हैं कि पितृपक्ष के दौरान हमारे घरों में कई तरह के स्वादिष्ठ पकवान बनाए जाते हैं. मुझे याद है, पिताजी के साथ हम उन पकवानों को एक खास पेड़ के पत्तों पर सजा कर खेत में रखते थे, जिन्हें कुछ देर बाद कौए आ कर खा लेते थे. पिताजी बताते थे कि ये पकवान हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

इसी तरह पड़ोस में रहने वाला ठाकुर परिवार भी पितृपक्ष के दौरान घर की छत पर पकवान और पानी रखता था. उन का मानना था कि इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और श्राद्ध के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं. तब उन की आत्मा को शांति मिलती है वरना पूरा साल घर में परेशानी रहती है. यह हमारी हजारों वर्षों पुरानी एक परंपरा है.

क्या है श्राद्ध

श्राद्ध का अर्थ है अपने परिवार, देवों और वंशपरंपरा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना. यह एक तरह की पूजा होती है, जिस में पितरों की आत्मा की शांति के लिए भोजन और जल अर्पित किया जाता है. साथ ही ब्राह्मण भोज, दान देना और पूजापाठ इत्यादि भी किया जाता है.

ब्रह्मपुराण के अनुसार, ‘‘एक उचित समय, स्थान और पात्र में अपने पूर्वजों के लिए विधिपूर्वक जो कर्म किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं.’’ मृत्यु के बाद भी मनुष्य की आत्मा नहीं मरती है. कर्म के आधार पर आत्मा को देव योनी और मनुष्य योनि प्राप्त होती है.

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