रात के लगभग 12 बजे थे. उनींदी सी नीरा की बगल में लेटते हुए पति अजीत बोले, ‘‘मुझे सुबह जल्दी उठा देना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कल बौस के साथ मीटिंग है. घर से 9 बजे निकलता हूं तो ट्रैफिक में फंस जाने के कारण देर हो जाती है.’’

‘‘तुम्हारी भी क्या जिंदगी है? सुबह जल्दी जाओ और रात में देर से आओ.’’

‘‘क्या करूं? शाम को तो मैं जानबूझ कर देर से निकलता हूं. कम से कम ट्रैफिक से तो बच जाऊं.’’

‘‘ट्रैफिक में ही जिंदगी बीत जाएगी, ऐसा लगता है.’’

शिशिर ट्रैफिक में फंसा झल्ला रहा था. आज उस की बेटी अवनी का बर्थडे जो था. तभी फोन की घंटी बज उठी, ‘‘शिशिर, कहां हो? अवनी की फ्रैंड्स केक काटने के लिए शोर मचा रही हैं. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘अवनी को फोन दो. सौरी, बेटा मैं ट्रैफिक में फंसा हूं. तुम केक  काट लो. वीडियो बना लेना. मैं आ कर देखूंगा. शिशिर भुनभुना कर बोला, ‘‘यह ट्रैफिक जाम तो जान का दुश्मन बन गया है.’’

नेहा गूगल मैप पर रोड ट्रैफिक देख कर घर से निकली थी, लेकिन स्कूल के पास वाले ट्रैफिक सिगनल के कारण पहुंचने में देर हो गई और आज भी उस की बायोमीट्रिक प्रेजैंट में देर हो चुकी थी. प्रिंसिपल साहब की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा वह अलग. यह ट्रैफिक जाम तो जीवन की मुसीबत बन चुका है.

सुरेशजी को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टर ने हौस्पिटल ले जाने को कहा. ऐंबुलैंस आने में ही 1 घंटा लग गया.

शशांक ने अपनी पत्नी के औफिस के पास फ्लैट इसलिए लिया था ताकि वह, पत्नी श्वेता और बेटा सुयश दोनों आसानी से अपने स्कूल पहुंच सकें. परंतु उस की कीमत शशांक को चुकानी पड़ रही है. अब उस का औफिस 35 किलोमीटर दूर है. रास्ते में मिलने वाला ट्रैफिक उसे सुबह से ही थका और परेशान कर देता है. कभीकभी तो उसे 2 घंटे लग जाते हैं.

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